Supreme Court : कोर्ट के आदेश में कहा गया है कि वित्तीय कठोरता का सार्वजनिक नीति में निश्चित रूप से एक स्थान है, लेकिन यह कोई ऐसा ताबीज नहीं है जो निष्पक्षता, तर्क और कानून के अनुसार काम को व्यवस्थित करने के कर्तव्य को दरकिनार कर दे.
Supreme Court : सरकारी नौकरी में तदर्थवाद की आलोचना करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अहम टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि अस्थायी लेबल के तहत नियमित कर्मचारियों की दीर्घकालिक नियुक्ति लोक प्रशासन में विश्वास को कम करती है. वहीं, यूपी उच्च शिक्षा सेवा आयोग में कुछ कर्मचारियों की सेवाओं को नियमित करते हुए न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की बेंच ने कहा कि राज्य एक संवैधानिक नियोक्ता है और वह उन लोगों के भरोसे बजट का संतुलन नहीं बना सकता जो सबसे ज्यादा बुनियादी और आवर्ती सार्वजनिक कार्य करते हैं. पीठ ने आगे कहा कि हमें यह याद रखना जरूरी है कि राज्य केवल बाजार में भागीदार नहीं है, बल्कि एक संवैधानिक नियोक्ता भी है.
सार्वजनिक नीति में निश्चित स्थान होना चाहिए
सर्वोच्च अदालत ने कहा कि जहां पर काम दिन-प्रतिदिन और साल दर साल दोहराया जाता है, वहां पर व्यवस्था को अपनी स्वीकृति शक्ति और नियुक्ति प्रथाओं में उस वास्तविकता को प्रतिबिंबित करना चाहिए. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अस्थायी लेबल के तहत नियमित श्रमिकों की दीर्घकालिक निकासी लोक प्रशासन में विश्वास काफी कम करती है और सुरक्षा के वादे को भी कम करती हुई दिखाई देती है. कोर्ट के आदेश में कहा गया है कि वित्तीय कठोरता का सार्वजनिक नीति में निश्चित रूप से एक स्थान है, लेकिन यह कोई ऐसा ताबीज नहीं है जो निष्पक्षता, तर्क और कानून के अनुसार काम को व्यवस्थित करने के कर्तव्य को दरकिनार कर दे. इसके अलावा यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि तदर्थवाद वहां पनपता है जहां पर प्रशासन अपारदर्शी होता है.
आउटसोर्सिंग व्यवस्थाएं प्रस्तुत करनी चाहिए : SC
पीठ ने स्पष्ट कहा कि राज्य सरकार के विभागों को सटीक स्थापना, रजिस्टर, मस्टर रोल और आउटसोर्सिंग व्यवस्थाएं प्रस्तुत करनी चाहिए. साथ ही सबूतों के साथ यह स्पष्ट करना चाहिए कि वे स्वीकृत पदों की तुलना में अनिश्चित नियुक्ति को क्यों प्राथमिकता देते हैं जहां पर काम स्थायी होता है. अदालत ने कहा कि अगर सरकार ने बाधा लगाई थी तो रिकॉर्ड में यह भी दर्शाया जाना चाहिए कि किन विकल्पों पर विचार किया गया है, समान पदों पर कार्यरत कर्मचारियों के साथ अलग व्यवहार क्यों किया गया और चुना गया रास्ता भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 21 के अनुरूप कैसे है. पीठ ने स्पष्ट कहा कि लंबे समय तक असुरक्षा के मानवीय परिणामों के प्रति संवेदनशीलता भावुकता नहीं है.
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