न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और के विनोद चंद्रन की पीठ तमिलनाडु के एक पुलिस कांस्टेबल द्वारा दायर अपील पर विचार कर रही थी, जो सब-इंस्पेक्टर पद के लिए पदोन्नति पर विचार न किए जाने से व्यथित था.
New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि कर्मचारी को पदोन्नति का अधिकार नहीं है, लेकिन अयोग्य घोषित किए जाने तक पदोन्नति के लिए विचार किए जाने का अधिकार है. न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और के विनोद चंद्रन की पीठ तमिलनाडु के एक पुलिस कांस्टेबल द्वारा दायर अपील पर विचार कर रही थी, जो सब-इंस्पेक्टर के पद के लिए पदोन्नति पर विचार न किए जाने से व्यथित था. पीठ ने कहा कि यह सामान्य बात है कि कर्मचारी को पदोन्नति का अधिकार नहीं है, लेकिन पदोन्नति के लिए चयन किए जाने पर विचार किए जाने का अधिकार है, जब तक कि अयोग्य घोषित न किया जाए. इस अधिकार का उल्लंघन उपरोक्त मामले में अन्यायपूर्ण तरीके से किया गया है.
आपराधिक मामले में अपीलकर्ता हुआ था गिरफ्तार
सर्वोच्च न्यायालय ने पाया कि चेक पोस्ट पर तैनाती के दौरान एक सहकर्मी की पिटाई करने के आरोप में उसे विभागीय और आपराधिक दोनों तरह की कार्रवाई का सामना करना पड़ा था. आपराधिक मामले में अपीलकर्ता को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन बाद में उसे बरी कर दिया गया, लेकिन सरकार ने 2009 में विभागीय कार्यवाही से उत्पन्न सजा को खारिज कर दिया. हालांकि, पुलिस अधीक्षक ने कहा कि अपीलकर्ता को पदोन्नति के लिए विचार नहीं किया गया, क्योंकि वह अयोग्य घोषित किया गया था. मई 2005 में एक वर्ष के लिए अगली वेतन वृद्धि स्थगित करने की सजा के कारण नियमों के अनुरूप उसकी पदोन्नति पर विचार नहीं किया गया.
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पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता की सजा में हस्तक्षेप किया गया था और नवंबर 2009 में इसे रद्द कर दिया गया था. पीठ ने अपने फैसले में कहा कि ऐसी परिस्थितियों में अपीलकर्ता को वर्ष 2019 में विचार से वंचित नहीं किया जा सकता था. इसमें कहा गया कि उपर्युक्त परिस्थितियों में हमारी राय है कि अपीलकर्ता को पदोन्नति के लिए विचार किया जाना चाहिए, भले ही उसकी आयु अधिक हो जाने के कारण उसे किसी प्रकार से वंचित न किया जाए .
योग्य पाए जाने पर याचिकाकर्ता को 2019 से किया जाएगा पदोन्नत
पीठ ने कहा कि विचार किया जाएगा और यदि वह योग्य पाया जाता है तो उसे 2019 से पदोन्नत किया जाएगा और परिणामी लाभ भी उसे दिए जाएंगे, क्योंकि यह उसकी गलती नहीं थी कि प्राधिकारी ने उस सजा के आधार पर पदोन्नति के लिए उसके विचार से इनकार कर दिया, जिसे पहले ही खारिज कर दिया गया था. पीठ ने व्यक्ति की अपील को स्वीकार कर लिया, जिसमें मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा अक्टूबर 2023 को पारित आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसे सेवारत उम्मीदवार के रूप में पदोन्नति के लिए विचार करने की उसकी याचिका को खारिज कर दिया गया था.
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