उत्तर प्रदेश इकाई को अपना नया अध्यक्ष राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के बाद ही मिलेगा. उन्होंने आगे कहा कि उत्तर प्रदेश के उम्मीदवारों को स्पष्ट संदेश दिया गया है कि वे वापस जाएं और ज़मीनी स्तर पर काम करना जारी रखें.
Lucknow: उत्तर प्रदेश भाजपा के नए अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर अटकलें लगातार जारी हैं. पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के बाद ही राज्य इकाई को नया नेता मिल सकता है. पहले, यह व्यापक रूप से माना जा रहा था कि पहले प्रदेश भाजपा अध्यक्ष का नाम तय होगा, इसके बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष का. हालांकि, अब सूत्रों का कहना है कि यह क्रम उलट जाएगा और उत्तर प्रदेश में नियुक्ति से पहले राष्ट्रीय नेतृत्व का चुनाव होगा. एक प्रमुख कारण यह बताया जा रहा है कि राष्ट्रीय चुनाव प्रक्रिया—जिसमें अधिकांश राज्यों में प्रदेश अध्यक्षों का चयन आवश्यक है, के लिए कोरम पहले ही पूरा हो चुका है. अब तक 28 राज्यों में चुनाव संपन्न हो चुके हैं. एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने पीटीआई-भाषा को बताया कि उत्तर प्रदेश इकाई को अपना नया अध्यक्ष राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के बाद ही मिलेगा.
प्रदेश अध्यक्ष के बारे में शीर्ष नेतृत्व लेता है निर्णय
उन्होंने आगे कहा कि उत्तर प्रदेश के उम्मीदवारों को स्पष्ट संदेश दिया गया है कि वे वापस जाएं और ज़मीनी स्तर पर काम करना जारी रखें. समय आने पर निर्णय की जानकारी दी जाएगी. हालांकि, उन्होंने कहा कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व प्रदेश अध्यक्ष के बारे में क्या निर्णय लेता है, इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता. यह पूछे जाने पर कि अगला अध्यक्ष कौन हो सकता है, नेता ने कहा कि अभी भविष्यवाणी करना मुश्किल है क्योंकि पार्टी केवल तात्कालिक परिस्थितियों पर ही नहीं, बल्कि दीर्घकालिक चुनावी और राजनीतिक समीकरणों पर भी विचार करती है. भाजपा के राजनीतिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में 98 संगठनात्मक जिले हैं, जिनमें 75 प्रशासनिक जिले और महानगर इकाइयां शामिल हैं. मार्च के उत्तरार्ध में, भाजपा के राज्य संगठनात्मक चुनाव प्रभारी और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ.महेंद्र नाथ पांडे ने 70 जिला अध्यक्षों की घोषणा की थी. उस घोषणा से यह अटकलें लगाई जा रही थीं कि जल्द ही प्रदेश अध्यक्ष के नाम की घोषणा कर दी जाएगी, क्योंकि चयन प्रक्रिया के लिए आधे से ज़्यादा संगठनात्मक जिलों का होना आवश्यक है. हालांकि, चार महीने बीत जाने के बाद भी पार्टी अभी तक आगे नहीं बढ़ पाई है. यहां तक कि राज्य परिषद के सदस्यों की सूची भी, जो राष्ट्रपति चुनाव में मतदाता और प्रस्तावक के रूप में काम करते हैं, अभी तक जारी नहीं की गई है.
कई संभावित दावेदारों के नाम चर्चा में
एक पार्टी पदाधिकारी ने पीटीआई को बताया कि चुनाव प्रक्रिया को पूरा करने के लिए ये परिषद सदस्य आवश्यक हैं. कई संभावित दावेदारों के नाम चर्चा में हैं. 2026 में पंचायत चुनाव और 2027 में राज्य विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि भाजपा जाति और क्षेत्रीय कारकों के साथ-साथ अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी (सपा) की रणनीति पर भी विचार कर रही है, जिसने अपने पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) अभियान को तेज कर दिया है. पार्टी के करीबी सूत्रों का कहना है कि भाजपा अपने नए प्रदेश अध्यक्ष के लिए एक बार फिर पिछड़े वर्ग की ओर रुख कर सकती है. 2016 से, यह पद ब्राह्मण और ओबीसी, दोनों समुदायों के नेताओं के पास रहा है: डॉ. महेंद्र नाथ पांडे (ब्राह्मण), स्वतंत्र देव सिंह और वर्तमान भूपेंद्र सिंह चौधरी, जो ओबीसी समुदाय से हैं. अतीत में, ओबीसी नेता कल्याण सिंह (लोध) और ब्राह्मण नेता कलराज मिश्र की जोड़ी ने राज्य में भाजपा को मज़बूत करने में मदद की थी. हालांकि उसके बाद से, लोध समुदाय को नेतृत्व की भूमिका नहीं दी गई है.
दलित मतदाताओं पर भी पार्टी की खास नजर
विश्लेषकों का मानना है कि इस बार लोध समुदाय का दावा मज़बूत है. राज्य मंत्री धर्मपाल सिंह और केंद्रीय मंत्री बीएल वर्मा इस पद के लिए सबसे आगे हैं. हालांकि, किसी भी फैसले में कल्याण सिंह के परिवार, जिसमें उनके बेटे और पूर्व सांसद राजवीर सिंह और पोते व राज्य मंत्री संदीप सिंह शामिल हैं, की सहमति शामिल होने की संभावना है. कुर्मी समुदाय से, जो एक और प्रभावशाली ओबीसी समूह है, विनय कटियार, ओम प्रकाश सिंह और स्वतंत्र देव सिंह जैसे नेता पहले राज्य इकाई का नेतृत्व कर चुके हैं, और सिंह को एक बार फिर एक मजबूत दावेदार माना जा रहा है. अन्य नामों में राज्यसभा सांसद बाबू लाल निषाद और पूर्व केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति शामिल हैं, जो दोनों निषाद समुदाय से हैं. अगर भाजपा किसी ब्राह्मण को प्रदेश अध्यक्ष बनाने का फैसला करती है, तो संभावित उम्मीदवारों में पूर्व उपमुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद दिनेश शर्मा, पार्टी महासचिव और एमएलसी गोविंद नारायण शुक्ला, गौतमबुद्ध नगर के सांसद महेश शर्मा और पूर्व सांसद हरीश द्विवेदी शामिल हैं. भाजपा दलित मतदाताओं, खासकर पूर्वी से पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक फैली प्रभावशाली सोनकर उपजाति पर भी नज़र गड़ाए हुए है.
राष्ट्रीय अध्यक्ष के बाद ही प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव
इस संदर्भ में पूर्व सांसद और पूर्व प्रदेश महासचिव विद्यासागर सोनकर के नाम पर विचार किया जा रहा है. कई गैर-जाटव दलित नेता भी दावेदारी में बताए जा रहे हैं. संपर्क करने पर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता हरिश्चंद्र श्रीवास्तव ने पीटीआई-भाषा को बताया कि भाजपा में संगठनात्मक चुनाव प्रक्रिया बूथ से मंडल और फिर ज़िले तक के क्रम का पालन करती है. इन चुनावों के बाद ही राज्य परिषद के सदस्य प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव करते हैं. उन्होंने आगे कहा कि आधे से ज़्यादा ज़िलों में चुनाव संपन्न होने के बाद पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व नामित चुनाव अधिकारी के माध्यम से कार्यक्रम की घोषणा करेगा और उसके अनुसार प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव किया जाएगा. भूपेंद्र सिंह चौधरी, एक ओबीसी (जाट) वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष हैं, जिन्हें अगस्त 2022 में नियुक्त किया गया था. इस कदम को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पार्टी के जातिगत समीकरणों को फिर से व्यवस्थित करने के प्रयास के रूप में देखा गया.
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