बिहार में SIR यानी कि स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन के मुद्दे पर हर गुजरते दिन के साथ सियासी पारा हाई हो रहा है. विपक्ष इस मुद्दे पर आक्रामक है और बीजेपी और चुनाव आयोग पर हमला बोल रहा है.
Row on SIR in Bihar: बिहार में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को लेकर पटना से दिल्ली तक राजनैतिक संग्राम जारी है न दिल्ली में संसद चल पा रहा है और न ही पटना में विधानसभा चल पाया,ऊपर से SIR पर बिहार विधानसभा राजनैतिक मैदान बन गया,इतना ही नहीं गाली गलौच हुई, माईक तोड़ी गई और मारपीट की नौबत तक आ गई. एक तरफ विपक्ष इस मुद्दे से पीछे हटने को तैयारी नहीं है तो दूसरी तरफ सरकार भी टसमस नहीं हो रही है.सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच संग्राम के बीच चुनाव आयोग का काम बदस्तूर जारी है. चुनाव आयोग के मुताबकि बिहार SIR का काम 99.8 फीसदी पूरा हो गया है. सबसे दिलचस्प बात है कि बिहार में वोटर लिस्ट से 65.2 लाख वोटरों के नाम कट सकते हैं, चुनाव आयोग की बात मानें तो 22 लाख वोटरों की मौत हो चुकी है, 7 लाख मतदाता एक जगह से ज्यादा जगहों पर वोटर बने हुए हैं, 35 लाख वोटर स्थायी रूप से पलायन कर चुके हैं और 1.2 लाख वोटरों का फॉर्म अभी तक चुनाव आयोग को नहीं मिले हैं. चुनाव आयोग अब इस फॉर्म को वेरिफाई करेगा और इसमें काटने और जोड़ने का काम जारी रहेगा.
ये प्रक्रिया 1 अगस्त से लेकर 1 सितंबर तक चलेगा. चुनाव आयोग ने ये भी साफ कर दिया है कि कि जो वोटर इस मुहिम में छूट गये हैं,वो अपना फॉर्म इस दौरान भर सकते हैं और राजनैतिक पार्टी के पास किसी अयोग्य वोटर के खिलाफ कोई सबूत है,उसे पेश भी कर सकते हैं. SIR का मुद्दा इतना गरम हो चुका है, बिहार के विपक्षी नेता तेजस्वी यादव ने चुनाव को बहिष्कार करने की धमकी भी दे चुके हैं. जाहिर है कि इस पर राजनीति हो रही है और विपक्ष लाचारी में ही चुनावी हथियार बनाने की कोशिश कर रहा है. तेजस्वी यादव समेत विपक्षी पार्टियों ने चुनाव आयोग की 11 दस्तावेजों की अनिवार्यता की आलोचना की, यही नहीं सवाल उठाया कि जो लोग बाहर रहते हैं वो कैसे फॉर्म भरेंगे और सवाल किया कि गरीब लोग इतने सारे कागजात कैसे जुटा पाएंगे लेकिन चुनाव आयोग को लगता है कि वोटर लिस्ट में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन कराना जरूरी है क्योंकि वोटरों की जमीनी हकीकत क्या है. इसीलिए चुनाव आयोग ने करीब 2.50 लाख लोगों को लगाया गया जिसमें 1.60 लाख बीएलए राजनैतिक पार्टी से भी चुने गये हैं.
चुनाव आयोग के आंकड़ों पर सवाल क्यों?
चुनाव आयोग आयोग के मुताबिक 65.2 लाख ऐसे वोटर मिले हैं जिसका नाम कट सकता है. 22 लाख ऐसे वोटर हैं जिनकी मौत हो चुकी है. मौत के आंकड़े ऊपर नीचे हो सकते हैं लेकिन मौत के आंकड़े में शायद ही कोई गड़बड़ी होगी? सवाल ये उठ सकता है कि 35 लाख वोटर कैसे पलायन कर गये, ये आंकड़ा 42 लाख तक जा सकता है क्योंकि 7 लाख ऐसे भी वोटर हैं जो एक जगह से ज्यादा जगहों पर वोटर लिस्ट में शामिल है? SIR पर हायतौबा मचा तो मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने तीखा जवाब दिया। कहा कि अगर चुनाव आयोग राजनैतिक पार्टी के दवाब में आए जाए तो जिन लोगों की मौत हो गई है, जो स्थायी तौर से अन्य राज्यों में जा कर बस गए हैं, जिन वोटर्स के नाम दो-तीन जगहों पर वोट बना है,क्या उन सबके नाम पर फर्जी वोटिंग होने दी जाए?
चुनाव आयोग ने ये भी कहा है कि क्या चुनाव आयोग द्वारा पारदर्शी प्रक्रिया के माध्यम से तैयार की जा रही है शुद्ध मतदाता सूची, निष्पक्ष चुनाव और मजबूत लोकतंत्र की नींव नहीं है? उन्होंने ये भी कहा है किसी न किनी दिन हम सभी को और भारत के सभी नागरिकों को राजनैतिक विचारधाराओं से परे जाकर गहराई से सोचना होगा. इस बयान से लगता है कि चुनाव आयोग विपक्ष की एक बात सुनने वाला नहीं है.
पलायन पर सरकार और विपक्ष के दावे में कितने छेद?
बिहार में पलायन का दर्द काफी पुराना है, लेकिन पलायन पर बिहार में खूब राजनीति होती है क्योंकि राजनैतिक पार्टियां अपनी कमजोरी को छिपाना चाहती है. चाहे नीतीश कुमार हो या लालू यादव ज्यादातर पलायन इन्ही के कार्यकालों में हुआ है. ताज्जुब की ये बात है कि जब बिहार में जातीय और सामाजिक सर्वे हो रहे थे तभी नीतीश कुमार की सरकार में तेजस्वी यादव उप मुख्यमंत्री थे और जाति जनगणना बिहार में कराने की खूब क्रेडिट लेते रहें हैं. 2023 में जाति गणना और आर्थिक सर्वे रिपोर्ट विधानसभा में पेश किया गया। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कुल 53 लाख 10 हजार 978 लोग बिहार से बाहर दूसरे राज्य या फिर दूसरे देश में रोजगार या शिक्षा के लिये गये पलायन कर गये हैं. जाहिर है कि इस सर्वे में मतदाता की बात नहीं थी. अब तेजस्वी यादव दावा कर रहे हैं कि करीब 4.5 करोड़ लोग पलायन करते हैं और एक आंकड़ा पेश किया जो कि उन्हीं की पार्टी के सांसद के द्वारा राज्यसभा में पूछा गया था. भारत सरकार ने जवाब दिया कि देश में 29.83 करोड़ लेबर रजिस्टर्ड हैं जिसमें पलायन का आंकड़ा शामिल है. इसके मुताबिक बिहार के 2.9 करोड़ असंगठित मजदूर हैं जिसमें पलायन भी शामिल है.
भारत सरकार ने अपने जवाब मे ये साफ नहीं किया कि कितने अंसगठित मजदूर पलायन कर चुके हं. अब सवाल है कि क्या बिहार के सर्वे में ये बात क्यों नहीं आई, सिर्फ 53 लाख से पलायन की बात क्यों आई, क्या सर्वे गलत है ये भी सवाल अब उठ सकता है? वहीं तेजस्वी यादव को जवाब देते हुए बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने कहा है कि लालू यादव के समय में 11 फीसदी लोग बाहर जाते थे अब सिर्फ 2 फीसदी से कम लोग बाहर जाते हैं. अब बिहार सरकार के आंकड़ों को माना जाए तो 53 लाख वोटर पलायन किया है या बाहर गये हैं जबकि चुनाव आयोग के आंकड़े के मुताबिक सिर्फ 35 लाख है तो मतलब चुनाव आयोग के पलायन के आंकड़े तो कम है,इसका मतलब ये निकाला जाए कि चुनाव आयोग का आंकड़ा बिहार सरकार के सर्वे के दायरे में हैं. अब यही लगता है कि विपक्षी पार्टियां जो भी दावा करे लेकिन चुनाव आयोग अपनी ही चाल चलेगा?

– धर्मेन्द्र कुमार सिंह, इनपुट एडिटर,
लाइव टाइम्स
(ये लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं)