बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे निशांत की राजनीति में एंट्री को लेकर लगातार कयास लगाए जा रहे हैं. बिहार की राजनीति में ये सवाल एक पहेली बनकर बन गया है.
Bihar Politics: बिहार में इसी साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, लेकिन इन दिनों चर्चा का मुख्य मुद्दा ये बन गया है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे निशांत राजनीति में कब कदम रखेंगे? ये सवाल बिहार की राजनीति में एक पहेली बन चुका है. दिलचस्प बात ये है कि नीतीश कुमार को छोड़कर लगभग हर पार्टी चाहती है कि निशांत को पार्टी या सरकार में कोई जिम्मेदारी दी जाए, लेकिन नीतीश इस पर बिल्कुल सहमत नहीं दिखते. सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष तक, निशांत की राजनीति में संभावित एंट्री को लेकर अटकलों का दौर जारी है. यहां तक कि जेडीयू के कई नेता भी निशांत को राजनीति में लाने की इच्छा जता चुके हैं. तो सवाल उठता है—नीतीश कुमार अपने बेटे को राजनीति में क्यों नहीं लाना चाहते? दरअसल, तीन दिन पहले ही निशांत कुमार का 44वां जन्मदिन था. इस मौके को राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने राजनीतिक रूप से भुनाने की कोशिश की. राजनीति के माहिर खिलाड़ी कुशवाहा ने नीतीश कुमार को संदेश देते हुए कहा “नीतीश जी से अति विनम्र आग्रह है कि समय और परिस्थिति की नजाकत को समझते हुए ये स्वीकार करें कि अब सरकार और पार्टी दोनों का संचालन उनके लिए उचित नहीं है. उनका अनुभव सरकार के लिए उपयोगी है, लेकिन पार्टी की कमान अब उन्हें सौंप देनी चाहिए. इसमें देर दल के लिए अपूरणीय क्षति का कारण बन सकती है.” इस बयान के बाद जैसे राजनीतिक पारा और चढ़ गया. निशांत को पार्टी या सरकार में लाने की मांग पिछले कुछ महीनों से लगातार उठ रही है, लेकिन उपेंद्र कुशवाहा के इस बयान ने इसे और हवा दे दी.
निशांत की मांग क्यों हो रही है तेज?
बिहार की राजनीति में कमोबेश सारे मुख्यमंत्रियों के बेटे अपने परिवार के वारिस बन चुके हैं. बिहार के मुख्यमंत्रियों के नामों की फेहरिस्त लंबी है लेकिन मौटे तौर पर बिहार की राजनीति में अस्सी के दशक में लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार और रामविलास पासवान ने एक साथ राजनीति शुरू की थी. हालांकि, इसके पहले ही कपूर्री ठाकुर और दारोगा प्रसाद राय के परिवार वालों की भी राजनीति में एंट्री हो चुकी है. चाहे जगन्नाथ मिश्रा हो या भागवत झा आजाद हो या सत्येन्द्र नारायण सिंह और फिर अब्दुल गफूर के बेटे की राजनीति एंट्री हो चुकी है लेकिन ज्यादा चर्चा हो रही है नीतीश के बेटे निशांत की क्योंकि नीतीश के साथ राजनीति करने वाले लालू प्रसाद यादव अपने बेटे तेजस्वी को उत्तराधिकारी के रूप में पेश कर चुके हैं वहीं रामविलास पासवान भी चिराग पासवान की ताजपोशी कर चुके हैं. निशांत पर नीतीश कुमार चुप्पी साधे हुए हैं लेकिन निशांत की मांग तब बढ़ गई है जब नीतीश कुमार की अजीब हरकतों और उनके स्वास्थ्य की वजहों से लगने लगा कि नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री रहते हुए उन्हें निशांत को राजनीतिक उत्तराधिकारी चुन लेना चाहिए. दरअसल, आरजेडी नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को लेकर नीतीश पर लगातार सवाल खड़े करती रही है. आरोप है कि नीतीश से राजपाठ नहीं चल रहा है. तभी से निशांत को राजनीति में लाने की मांग उठने लगी है. इसकी तीन वजहें हैं एक नीतीश के बाद जेडीयू को कौन चलाएगा, ये बेचैनी जेडीयू में जबर्दस्त ढंग से चल रही है. दूसरी वजह ये है कि कुर्मी और कुशवाहा जाति में ये चिंता सता रही है कि उनकी जाति का नेतृत्व नीतीश के बाद कौन करेगा? और तीसरी वजह है कि अगर नीतीश कमजोर हुए तो एनडीए में जेडीयू की दावेदारी कमजोर हो जाएगी. इसीलिए सरकार और पार्टी के अंदर और पार्टी के बाहर में निशांत को राजनीति में लाने का दवाब बढ़ रहा है. यही वजह है कि निशांत की मांग अब राबड़ी देवी से लेकर तेजस्वी यादव, बीजेपी से लेकर चिराग पासवान भी करने लगे हैं लेकिन नीतीश को लगता है कि निशांत के आने से जेडीयू में ही सवाल उठने लगेंगे.
नीतीश को वंशवाद के दाग का डर
नीतीश कुमार एक पढ़े-लिखे और शालीन राजनेता माने जाते हैं. वह हमेशा से परिवारवाद के खिलाफ मुखर रहे हैं और लालू प्रसाद यादव पर इसी मुद्दे को लेकर निशाना साधते रहे हैं. ऐसे में अगर वह अपने बेटे को राजनीति में लाते हैं, तो उनकी खुद की छवि पर सवाल खड़े हो सकते हैं. यही वजह है कि वह, स्वास्थ्य में गिरावट के बावजूद, निशांत को आगे बढ़ाने से हिचक रहे हैं. राजनीतिक हलकों में यह भी कहा जा रहा है कि जब तक नीतीश पूरी तरह सक्रिय हैं, तब तक शायद ही वह अपने बेटे को राजनीति में लाएंगे. हां, अगर उनकी तबीयत ज्यादा खराब हुई या उम्र के कारण वह पीछे हटे, तभी निशांत की एंट्री संभव है. नीतीश को यह भी डर है कि निशांत की राजनीति में एंट्री के बाद उनके बेटे की तुलना तेजस्वी यादव और चिराग पासवान से होने लगेगी, जिससे उनकी वर्षों की बनाई हुई छवि को धक्का लग सकता है. नीतीश एक अनुभवी रणनीतिकार हैं और शायद इसी कारण वे इस राजनीतिक जोखिम को नहीं लेना चाहते.

– धर्मेन्द्र कुमार सिंह, इनपुट एडिटर, लाईव टाइम्स