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स्वयंसेवकों की भावनात्मक ऊर्जा से आती है संघ की शक्ति, सौ वर्षों से बढ़ रही हैं शाखाएं: मोहन भागवत

by Sanjay Kumar Srivastava
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RSS chief Mohan Bhagwat

RSS chief Mohan Bhagwat: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को कहा कि संगठन को अपनी शक्ति अपने स्वयंसेवकों की भावनात्मक और जीवन शक्ति से मिलती है.

RSS chief Mohan Bhagwat: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को कहा कि संगठन को अपनी शक्ति अपने स्वयंसेवकों की भावनात्मक और जीवन शक्ति से मिलती है. उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि प्रत्येक स्वयंसेवक स्वेच्छा से प्रचारक बनता है. जयपुर में पाथेय कण संस्थान में “और यह जीवन समर्पित” पुस्तक के विमोचन के अवसर पर भागवत ने कहा कि यह पुस्तक राजस्थान के 24 दिवंगत आरएसएस प्रचारकों की जीवन यात्रा का वृत्तांत प्रस्तुत करती है. उन्होंने कहा कि संघ अपने स्वयंसेवकों की भावनात्मक शक्ति और जीवन शक्ति से चलता है. अपनी सोच से ही प्रत्येक स्वयंसेवक प्रचारक बनता है. यही संघ की जीवन ऊर्जा है. भागवत ने आगाह किया कि संगठन के विस्तार और बेहतर कार्य स्थितियों के बावजूद इसकी मूल भावना अपरिवर्तित रहनी चाहिए.

RSS का कार्य अब सार्वजनिक चर्चा का विषय

उन्होंने कहा कि आज संघ का विस्तार हुआ है और सुविधाएं बढ़ी हैं, लेकिन इसके साथ अपनी चुनौतियां भी हैं. हमें वैसे ही बने रहना चाहिए जैसे हम विरोध और उपेक्षा के समय में थे. यही भावना संघ को आगे ले जाएगी. आरएसएस के कार्य की प्रकृति की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि संगठन को दूर से नहीं समझा जा सकता. भागवत ने कहा कि कई लोगों ने प्रतिस्पर्धा में संघ की तरह शाखाएं चलाने की कोशिश की, लेकिन कोई भी 15 दिनों से अधिक नहीं चली. हमारी शाखाएं सौ वर्षों से चल रही हैं और बढ़ती जा रही हैं क्योंकि संघ अपने स्वयंसेवकों के समर्पण से कायम है. इस मौके पर भागवत ने कहा कि आरएसएस का कार्य अब सार्वजनिक चर्चा और सद्भावना का विषय बन गया है.

देश के विकास में RSS का अहम योगदान

उन्होंने कहा कि एक सदी पहले कौन सोच सकता था कि साधारण शाखाएं राष्ट्र निर्माण में योगदान देंगी? लोग हमारा मजाक उड़ाते थे और कहते थे कि हम केवल हवा में लाठी लहरा रहे हैं. लेकिन आज संघ बढ़ती सामाजिक स्वीकृति के साथ अपनी शताब्दी मना रहा है. प्रचारकों के जीवन पर हाल ही में प्रकाशित पुस्तक का जिक्र करते हुए भागवत ने कहा कि यह न केवल गर्व पैदा करती है बल्कि कठिन, मूल्य-आधारित जीवन जीने की प्रेरणा भी देती है. उन्होंने स्वयंसेवकों से पुस्तक में प्रस्तुत आदर्शों को आत्मसात करने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि यदि उनकी प्रतिभा का एक कण भी हमारे जीवन में प्रवेश करता है, तो हम भी समाज और राष्ट्र को प्रकाशित कर सकते हैं. मोहन भागवत ने कहा कि आज आरएसएस का एक-एक स्वयंसेवक देश के विकास में अपना योगदान दे रहा है. आरएसएस की सोच हमेशा रही है कि भारत विश्व गुरु बने और दुनिया का नेतृत्व करे.

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