Dahi Handi 2025: श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं को समर्पित, उल्लास और ऊर्जा से भरपूर पर्व 16 अगस्त को मनाया जाएगा. जानें क्या है इस पर्व का महत्व.
Dahi Handi 2025: भाद्रपद माह आते ही पूरे देश में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की तैयारियां शुरू हो जाती हैं. उसी के अगले दिन बड़े ही उल्लास के साथ मनाया जाता है “दही हांडी” का पर्व, जो भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं की जीवंत प्रस्तुति मानी जाती है. इस वर्ष दही हांडी 16 अगस्त 2025 को मनाई जाएगी, जबकि जन्माष्टमी का पर्व 15 अगस्त को पड़ रहा है. दही हांडी न सिर्फ धार्मिक आस्था से जुड़ा है, बल्कि यह युवा ऊर्जा, टीम वर्क और सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक बन चुका है.
क्या है दही हांडी?
दही हांडी पर्व को गोपाल कला उत्सव के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन मटकी में दही, माखन, मिश्री और मेवा भरकर उसे ऊंचाई पर टांगा जाता है, जिसे ‘हांडी’ कहते हैं. फिर ‘गोविंदा’ की टोलियां पिरामिड बनाकर उसे फोड़ने की कोशिश करती हैं. यह आयोजन पूरी तरह श्रीकृष्ण की उस बाल लीलाओं पर आधारित होता है, जब वे अपने सखाओं संग माखन चोरी किया करते थे. पर्व के दौरान पूरे माहौल में कृष्ण भजनों की गूंज, ढोल-नगाड़े की थाप, और नृत्य-गीतों से भरा उत्सवमय वातावरण देखने को मिलता है.
कब और कैसे हुई इसकी शुरुआत?

दही हांडी का इतिहास सीधे द्वापर युग से जुड़ा हुआ है. कथा के अनुसार, बाल कृष्ण घर-घर जाकर माखन-मिश्री की चोरी करते थे. इस शरारत से परेशान गोपियां मटकी को ऊंचाई पर लटकाने लगीं, ताकि कृष्ण न पहुंच पाएं. लेकिन कान्हा भी कहां रुकने वाले थे! उन्होंने अपने सखाओं संग ऊंची लटकी मटकी फोड़ना शुरू किया. इसी पौराणिक घटना की स्मृति में जन्माष्टमी के अगले दिन यह परंपरा चली आ रही है, जिसे आज एक भव्य सार्वजनिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है.
कहां-कहां होती है इसकी धूम?
हालांकि दही हांडी पूरे भारत में मनाया जाता है, लेकिन इसकी सबसे ज्यादा भव्यता महाराष्ट्र में देखने को मिलती है, खासकर मुंबई, ठाणे और पुणे जैसे शहरों में. यहां बड़े-बड़े मैदानों में लाखों की भीड़, ऊंचाई पर लटकी मटकी और आकर्षक इनामों की घोषणा के साथ प्रतियोगिता का आयोजन होता है. उत्तर प्रदेश के मथुरा, वृंदावन और गोकुल में भी यह पर्व आध्यात्मिक रंग में रंगा हुआ रहता है, जहां भक्त भगवान की बाल लीलाओं को जीवंत करने के लिए उत्सव मनाते हैं.
दही हांडी केवल एक पर्व नहीं, बल्कि श्रद्धा, उत्साह, और परंपरा का संगम है. श्रीकृष्ण की नटखट लीलाओं को समर्पित यह दिन हर साल यह याद दिलाता है कि ईश्वर भी बाल्यकाल में कितने सरल, हंसमुख और प्रेमपूर्ण थे. 2025 में 16 अगस्त को मनाया जाने वाला यह पर्व एक बार फिर काशी से मुंबई तक उल्लास का वातावरण बनाएगा, जहां ‘गोविंदा आला रे’ की गूंज आकाश तक सुनाई देगी.
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