Home Religious धर्म और हिम्मत की मिसाल थे गुरु गोबिंद सिंह के साहिबजादे, 9 और 7 साल की उम्र में मुगलों ने दीवार में चुनवाया

धर्म और हिम्मत की मिसाल थे गुरु गोबिंद सिंह के साहिबजादे, 9 और 7 साल की उम्र में मुगलों ने दीवार में चुनवाया

by Neha Singh
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Shahidi Saptah Story

Shahidi Saptah Story: यहां पढ़ें साहिबजादों की शहादत का इतिहास, कैसे उन्होंने अपने धर्म के लिए छोटी सी उम्र में शहादत दी थी.

25 December, 2026

Shahidi Saptah Story: 26 दिसंबर सिख धर्म और भारतीय संस्कृति के लिए बहुत बड़ा दिन है. इस दिन सिखों के 10वें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह के साहिबजादों की शहादत को याद किया जाता है. साल 1704 में बाबा जोरावर सिंह (9 वर्ष) और बाबा फतेह सिंह (7 वर्ष) ने नन्ही सी उम्र में अपनी संस्कृति और धर्म के लिए शहादत दे दी थी. वे अपने सिद्धांत के लिए क्रूर मुगलों के सामने अडिग रहे और इस्लाम कबूल करने से इनकार कर दिया था. उनके ही रसोइयें ने उनकी मुखबरी की थी. इस लेख में आपको साहिबजादों की शहादत की पूरी कहानी के बारे में पता चलेगा.

रसोइए गंगू ने की मुखबरी

दिसंबर, 1704 में मुगलों ने अचानक आनंदपुर साहिब किले पर हमला कर दिया था. 20-21 दिसंबर, 1704 को गुरु गोबिंद सिंह अपने परिवार को लेकर वहां से निकल गए. जब सभी लोग सरसा नदी को पार कर रहे थे, तो पानी के बहाव के कारण पूरा परिवार बिछड़ गया. गुरु गोबिंद सिंह अपने दो बड़े साहिबजादे बाबा अजीत सिंह और बाबा जुझार सिंह के साथ चमकौर पहुंचे. वहीं दूसरी तरफ माता गुजरी जी, दोनों छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह और अन्य सिखों अलग हो गए. उनका रसोइया गंगू ने उन्हें अपने घर ले गया. पैसे की लालच में रसोइये गंगू ने मुगल सेना को सारी जानकारी दे दी. नवाज वजीर खान ने गुजरी जी और दोनों साहिबजादों को कैद कर लिया.

युद्ध में शहीद हुए बड़े साहिबजादे

दूसरी तरफ गुरु गोबिंद सिंह चमकौर में मुगल सेना के साथ लड़ाई में व्यस्त हो गए. मुगलों की सेना बड़ी थी और सिख सैनिक बहुत कम. युद्ध में सिखों की शहादत को देखते हुए साहिबजादों ने लड़ने की अनुमति मांगी और बहादुरी से मुगलों का सामना किया. 22 दिसंबर को दोनों साहिबजादे बाबा अजीत सिंह (17-18 वर्ष) और बाबा जुझार सिंह (13-14 वर्ष) भी शहीद हो गए.

“जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल”

26 दिसंबर को, नवाब वज़ीर खान ने माता गुजरी और दो छोटे साहिबजादों को ठंडे बुर्ज में कैद कर लिया. वजीर खान ने दोनों साहिबजादों को अपने दरबार में बुलाया और डरा-धमकाकर उन्हें इस्लाम कबूल करने का हुक्म दिया लेकिन, दोनों साहिबजादे अपने धर्म के लिए अडिग रहे. उन्होंने इस्लाम कबूल करने से मना कर दिया और भरे दरबार में सिख नारा लगाया “जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल” वज़ीर खान ने उन्हें धमकी दी कि या तो वे अगले दिन तक धर्म बदल लें या मरने के लिए तैयार रहें. 27 दिसंबर को, अगले दिन माता गुजरी ने प्यार से अपने दोनों पोतों को तैयार किया और उन्हें वजीर खान के दरबार में वापस भेज दिया.

21 दिसंबर से 27 दिसंबर तक मनाया जाता है शहीदी सप्ताह

वजीर खान ने फिर से उनसे धर्म बदलने के आदेश दिया, लेकिन साहिबजादों ने मना कर दिया और एक बार फिर सिख नारा लगाया. गुस्से में आकर, वजीर खान ने हुक्म दिया कि दोनों साहिबजादों को जिंदा दीवार में चुनवा दिया जाए और वे शहीद हो गए. जैसे ही यह खबर माता गुजरी तक पहुंची, उन्होंने भी अपने प्राण त्याग दिए. साहिबजादों का यह बलिदान और साहस हमें अपनी संस्कृति की रक्षा करने के लिए हमेशा प्रेरणा देगा. साहिबजादों की शहादत को याद करते हुए 21 दिसंबर से 27 दिसंबर तक सिखों समेत पूरा देश शहीदी सप्ताह मनाता है.

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