Mansa Devi Stampede: हरिद्वार की घटना भारत में लंबे समय से चली आ रही धार्मिक स्थलों पर भीड़ प्रबंधन की विफलता की एक और मिसाल बन गई है. इन हादसों को रोकने के लिए अब केवल शोक नहीं, सख्त नीति और क्रियान्वयन जरूरी है.
Mansa Devi Stampede: रविवार को हरिद्वार के मनसा देवी मंदिर में दर्शन के लिए उमड़ी भीड़ के बीच भगदड़ मच गई, जिसमें कम से कम 6 लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए.यह घटना उन दर्जनों हादसों की फेहरिस्त में जुड़ गई है, जो धार्मिक स्थलों या बड़े आयोजनों में भीड़ नियंत्रण की विफलता के कारण हुए हैं.
2025 में अब तक 70 से ज्यादा लोगों की गई जान
साल 2025 देश के लिए एक ग्रहण के साबित होता नजर आ रहा है. इस साल की शुरुआत से अब तक धार्मिक आयोजनों, स्टेशनों और उत्सवों के दौरान भगदड़ में 70 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. हरिद्वार की घटना ने एक बार फिर इस गंभीर समस्या की ओर ध्यान खींचा है.

बीते वर्षों में देश में हुए प्रमुख भगदड़ हादसे
हथरस, जुलाई 2024: भोल बाबा के ‘सत्संग’ में 100 से ज्यादा लोगों की मौत.
महा कुंभ, जनवरी 2025: संगम क्षेत्र में 30 श्रद्धालु मरे, 60 घायल.
तिरुपति, जनवरी 2025: वैकुंठ द्वार दर्शन में टिकट के लिए मची भगदड़ में 6 मौतें.
दिल्ली रेलवे स्टेशन, फरवरी 2025: प्रयागराज जाने की भीड़ में 18 मौतें.
गोवा, मई 2025: श्री लैराई देवी मंदिर में उत्सव के दौरान 6 मौतें, 100 घायल.
बैंगलोर, जून 2025: IPL जीत का जश्न मनाते हुए RCB परेड में 11 मौतें.
इंदौर, मार्च 2023: राम नवमी पर बावड़ी की छत गिरने से 36 लोगों की जान गई.
वैष्णो देवी, जनवरी 2022: भीड़ में धक्का-मुक्की से 12 श्रद्धालुओं की मौत.
पटना, अक्टूबर 2014: गांधी मैदान में दशहरा बाद भगदड़ में 32 मौतें.
दतिया, अक्टूबर 2013: रतनगढ़ मंदिर में अफवाह से मची भगदड़ में 115 मौतें.
नैना देवी, अगस्त 2008: हिमाचल में अफवाह के चलते भगदड़ में 162 की मौत.
मांधारदेवी मंदिर, जनवरी 2005: महाराष्ट्र में सबसे भीषण हादसा, 340 श्रद्धालु मरे.
नासिक कुंभ, अगस्त 2003: पवित्र स्नान के दौरान भगदड़ में 39 की मौत.
हर हादसे में एक ही सवाल, कब सुधरेगा सिस्टम?

इन घटनाओं से बार-बार सबक लेने की बात होती है, लेकिन हर बार नए हादसे हमें याद दिलाते हैं कि भीड़ प्रबंधन, सुरक्षा योजना और आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली में अब भी गंभीर खामियां हैं. मनसा देवी हादसा सिर्फ एक दुखद घटना नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि अब ठोस कार्रवाई की जरूरत है.
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