Weather effects on health: पिछले पांच दशकों के अध्ययनों से मिले साक्ष्यों ने यह साबित किया है कि कार्यस्थल पर गर्मी श्रमिकों के स्वास्थ्य और जीवन को गंभीर रूप से प्रभावित करता है.
Weather effects on health: संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एवं जलवायु एजेंसियों की ताज़ा रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि बढ़ते तापमान का सीधा असर श्रमिकों की उत्पादकता और स्वास्थ्य पर पड़ रहा है. रिपोर्ट के अनुसार, 20 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान पर श्रमिकों की कार्यक्षमता में दो से तीन प्रतिशत तक की गिरावट देखी गई है. पिछले पांच दशकों के अध्ययनों से मिले साक्ष्यों ने यह साबित किया है कि कार्यस्थल पर गर्मी का असर श्रमिकों के स्वस्थ और उत्पादक जीवन जीने की क्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित करता है. रिपोर्ट में बताया गया है कि हीटस्ट्रोक, निर्जलीकरण और मस्तिष्क व गुर्दे संबंधी विकार जैसी समस्याएं गर्मी से सीधे जुड़ी हैं. बाहरी और भीतरी दोनों तरह के श्रमिक बढ़ते जोखिम का सामना कर रहे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने इस खतरे से निपटने के लिए दिशा-निर्देश भी प्रस्तुत किए हैं.
गरीब वर्ग सबसे अधिक प्रभावित
विशेषज्ञों का कहना है कि समाज का सबसे गरीब वर्ग गर्मी से सबसे ज्यादा प्रभावित होता है, जबकि उनके पास इससे निपटने की क्षमता सबसे कम होती है. तमिलनाडु स्थित श्री रामचंद्र उच्च शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान की प्रोफ़ेसर विद्या वेणुगोपाल ने कहा कि यह समस्या अब वैश्विक स्तर पर एक गंभीर व्यावसायिक संकट बन चुकी है, जो श्रमिकों के दीर्घकालिक स्वास्थ्य और आर्थिक सुरक्षा को खतरे में डाल रही है. जिसके लिए तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता है. वेणुगोपाल ने 2023 में किए गए एक अध्ययन में बताया कि कार्यस्थल पर अत्यधिक गर्मी के संपर्क में आने वाली गर्भवती महिलाओं में गर्भपात का जोखिम दोगुना हो सकता है. ये निष्कर्ष ब्रिटिश जर्नल ऑफ ऑब्सटेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी में प्रकाशित हुए हैं. विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के अनुसार, वर्ष 2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा और दिन के तापमान का 40 डिग्री सेल्सियस और 50 डिग्री सेल्सियस से अधिक होना आम होता जा रहा है.
दुनिया की लगभग आधी आबादी पर प्रभाव
WHO-WMO की रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि दुनिया की लगभग आधी आबादी उच्च तापमान के प्रतिकूल प्रभावों से ग्रस्त है. लेखकों ने कहा कि ये आंकड़े दुनिया भर के श्रमिकों पर गर्मी के तनाव के बिगड़ते प्रभाव को दूर करने के लिए तत्काल कार्रवाई की जरूरत है. मार्गदर्शन के तहत सुझाए गए उपायों में कार्यस्थल पर गर्मी के कारण होने वाले स्वास्थ्य संबंधी खतरों से संबंधित नीतियां विकसित करना, स्थानीय मौसम, विशिष्ट कार्यकर्ता भूमिकाओं और कमजोरियों के अनुरूप योजनाएं और सलाह देना शामिल है. भारत में वर्तमान जलवायु रणनीतियों में प्रमुख चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए वेणुगोपाल ने कहा कि समाधान हमारे सांस्कृतिक संदर्भ को ध्यान में रखते हुए विकसित किए जाने चाहिए. कई जलवायु अनुकूलन रणनीतियां हमारी संस्कृति की बुनियादी वास्तविकताओं को नजरअंदाज करती हैं और इसलिए विफल हो रही हैं. आर्थिक असमानताएं भी एक महत्वपूर्ण कारक हैं और कार्यस्थल में गर्मी के प्रभाव से निपटने के समाधान तैयार करते समय इन पर ध्यान दिया जाना चाहिए.
कमज़ोर आबादी पर भी ध्यान देने की जरूरत
उन्होंने आगे कहा कि समाज के सबसे गरीब वर्ग अत्यधिक गर्मी से सबसे ज़्यादा प्रभावित होते हैं. फिर भी इन प्रभावों से निपटने की उनकी क्षमता सबसे कम होती है. लेखकों ने कमज़ोर आबादी पर भी ध्यान केंद्रित करने का आह्वान किया, जिसमें मध्यम आयु वर्ग और वृद्ध श्रमिकों, पुरानी बीमारियों से ग्रस्त या कम शारीरिक फिटनेस वाले लोगों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए, जो उन्हें गर्मी के तनाव के उच्च जोखिम में डाल सकते हैं. उन्होंने कहा कि गर्मी के तनाव के लक्षणों को पहचानने और उनका इलाज करने के लिए प्राथमिक उपचारकर्ताओं, स्वास्थ्य पेशेवरों, नियोक्ताओं और श्रमिकों के बीच जागरूकता बढ़ाने की ज़रूरत है. उन्होंने कहा कि दुनिया भर के श्रमिकों के लिए अधिकतम सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए और अधिक शोध और मूल्यांकन की आवश्यकता है.
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