Chhath Puja History and Importance: सूर्य देवता और छठी मैया को समर्पित छठ महापर्व के बारे बहुत कम लोगों को पता है कि इस व्रत का महत्व क्या है और इसकी शुरूआत कैसे हुई. आज हम आपको बताएंगे कि छठ पर्व का व्रत सबसे पहले किसने और कब किया था.
23 October, 2025
Chhath Puja History and Importance: सनातन धर्म में सबसे लंबा और सबसे मुश्किल व्रत छठ महापर्व का माना जाता है. यह महापर्व यूपी और बिहार में मुख्यतः मनाया जाता है. चार दिनों तक चलने वाला यह व्रत इस साल 25 अक्तूबर को शुरू हो जाएगा और 28 अक्तूबर की सुबह सूर्य देव को अर्घ्य देते हुए खत्म होगा. बिहारवासियों के लिए यह केवल एक व्रत नहीं, बल्कि उनकी सांस्कृतिक पहचान और आस्था का प्रतीक है. सूर्य देवता और छठी मैया को समर्पित छठ महापर्व के बारे बहुत कम लोगों को पता है कि इस व्रत का महत्व क्या है और इसकी शुरूआत कैसे हुई. आज हम ाप बताएंगे कि छठ पर्व का व्रत सबसे पहले किसने और कब किया था.
माता सीता ने की थी सूर्यपूजा
छठ महापर्व के बारे में हमें रामायण से जानकारी मिलती है कि सबसे पहले माता सीता ने सूर्यदेव की उपासना के साथ छठ पर्व की शुरूआत की थी. माना जाता है कि भगवान राम जब 14 साल वनवास काटने और रावण का वध करने के बाद लौटे तो उनके ऊपर ब्राह्मण हत्या का पाप लग गया था. इस पाप के प्रायश्चित के लिए मुग्दल ऋषि ने सूर्य देव की पूजा करने का सुझाव दिया. इसके बाद माता सीता और भगवान राम ने बिहार के मुंगेर में गंगा घाट पर 6 दिनों तक सूर्य की पूजा की. आज भी मुंगेर में माता सीता के पदचिन्हों को सरंक्षित किया गया है और लोग बड़ी संख्या हर साल गंगा घाट के पास छठ पूजा के लिए पहुंचते हैं.
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द्रौपदी से जुड़ी है कथा
छठ महापर्व के तार द्वापर युग से भी जुड़े हैं. माना जाता है कि महाभारत काल में जब पांडवों से उनका राजपाठ छिन गया था, तब उनकी पत्नी द्रौपदी ने अपने कष्टों के समाधान के लिए सूर्यदेव की पूजी की थी. उसी काल में कर्ण भी प्रतिदिन सूर्य भगवान को अर्घ्य दिया करते थे, जो छठ की ही एक मख्य विधि है, इसलिए सूर्यपुत्र कर्ण को भी छठ पूजा से जोड़ा जाता है.

सूर्यदेव और छठी मैया की होती है पूजा
छठ महापर्व चार दिनों का कठोर व्रत होता है. पहले दिन नहाय खाय मनाया जाता है, जिसका मतलब है स्नान करके भोजन करना. इस दिन वर्ती नहाकर और शुद्ध सात्विक भोजन करके अपने मन को शुद्ध करते हैं. अगले दिन होता है खरना, जब व्रती पूरा दिन व्रत करके शाम को छठी मैया और सूर्यदेव की पूजा करते हैं और प्रसाद खाते हैं. इस दिन प्रसाद भी बांटा जाता है. तीसरा दिन है संध्या अर्घ्य का, इस दिन व्रती पूरा दिन व्रत रखकर शाम को घाट पहुंचते हैं और छठी मैया की पूजा करते हैं. व्रती पानी में खड़े होकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं. अगले दिन सुबह-सुबह वर्ती घाट पहुंचकर उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं और इसी के साथ छठ व्रत का समापन होता है.
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