babaree masjid vidhvans: इतिहास के पन्नों में 6 दिसंबर 1992 एक ऐसे दिन के रूप में दर्ज हो गया, जिसने पूरे भारत को हिला दिया. फैजाबाद जिला प्रशासन को भी अंदेशा नहीं था कि यहां से निकली चिंगारी पूरे देश को अपनी चपेट में ले लेगी.
babaree masjid vidhvans: इतिहास के पन्नों में 6 दिसंबर 1992 एक ऐसे दिन के रूप में दर्ज हो गया, जिसने पूरे भारत को हिला दिया. फैजाबाद जिला प्रशासन को भी अंदेशा नहीं था कि यहां से निकली चिंगारी पूरे देश को अपनी चपेट में ले लेगी. 6 दिसंबर 1992 को राम नगरी अयोध्या में हिंदुओं की भीड़ ने 16वीं सदी की बाबरी मस्जिद को गिरा दिया. इसके बाद हुए दंगों में लगभग 1,500 लोग मारे गए थे. विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के आह्वान पर देश के कोने-कोने से हजारों लोगों का हुजूम अयोध्या पहुंचा था. 4 दिसंबर 1992 की शाम तक अयोध्या में RSS के हजारों कार्यकर्ता पहले ही एकत्रित हो चुके थे. हिंदुओं ने बाबरी मस्जिद वाले स्थान पर एक मंदिर का निर्माण शुरू करने की योजना बनाई थी, जिसे वे भगवान राम का जन्मस्थान मानते थे. विश्व हिंदू परिषद के तत्कालीन अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल भी 5 दिसंबर तक अयोध्या पहुंच चुके थे.
1980 के दशक में VHP ने मंदिर के लिए तेज किया अभियान
मस्जिद से कुछ ही दूरी पर एक फुटबॉल मैदान था. जहां सिर पर भगवा पट्टी और स्कार्फ पहने हजारों कार्यकर्ता जमा थे. 1980 के दशक में विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) को अपनी राजनीतिक आवाज बनाकर उस स्थल पर राम मंदिर के निर्माण के लिए एक अभियान शुरू किया. इस आंदोलन के एक हिस्से के रूप में कई रैलियां और मार्च आयोजित किए गए, जिनमें लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व वाली राम रथ यात्रा भी शामिल थी . 6 दिसंबर 1992 को विश्व हिन्दू परिषद और भाजपा ने उस स्थल पर 1,50,000 लोगों की एक रैली आयोजित की. रैली हिंसक हो गई और भीड़ ने सुरक्षा बलों पर धावा बोलकर मस्जिद को गिरा दिया. घटना की बाद में हुई जांच में 68 लोगों को दोषी पाया गया, जिनमें भाजपा और विश्व हिन्दू परिषद के कई नेता भी शामिल थे. इस विध्वंस के परिणामस्वरूप भारत के हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच कई महीनों तक दंगे हुए , जिसमें कम से कम 1,500 लोग मारे गए. पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी हिंदुओं के खिलाफ जवाबी हिंसा हुई.
23 अक्टूबर 1990 को बिहार में आडवाणी हुए गिरफ्तार
1528 में इस क्षेत्र पर मुगल विजय के बाद मुगल कमांडर मीर बाकी ने इस स्थल पर एक मस्जिद का निर्माण कराया था , और मुगल सम्राट बाबर के नाम पर ‘बाबरी मस्जिद’ का नाम रखा था. पहली बार 1822 में फैजाबाद अदालत के एक अधिकारी द्वारा यह दावा किया गया था कि मस्जिद मंदिर की जगह पर खड़ी है. लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व वाली राम रथ यात्रा 25 सितंबर 1990 को गुजरात के सोमनाथ से शुरू हुई थी. यात्रा को 23 अक्टूबर 1990 को बिहार के समस्तीपुर में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव ने रोक दिया था और आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया था. इस यात्रा का उद्देश्य प्रस्तावित मंदिर के लिए समर्थन जुटाना और मुस्लिम विरोधी भावनाओं को भड़काकर हिंदू वोटों को एकजुट करना था. आडवाणी के अयोध्या पहुंचने से पहले ही बिहार की लालू सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था. इसके बावजूद संघ परिवार के समर्थकों का एक बड़ा समूह अयोध्या पहुंचा. भाजपा ने वीपी सिंह सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया, जिससे नए चुनाव कराने पड़े. भाजपा ने केंद्रीय संसद में अपनी सीटों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि की, साथ ही उत्तर प्रदेश विधानसभा में भी बहुमत हासिल किया.
CBI ने आडवाणी सहित कई नेताओं के खिलाफ तय किया आरोप
16 दिसंबर 1992 को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मस्जिद के विध्वंस की जांच के लिए सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एमएस लिब्रहान की अध्यक्षता में लिब्रहान आयोग का गठन किया. 16 वर्षों में 399 बैठकों के बाद आयोग ने 30 जून 2009 को प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को अपनी 1,029 पृष्ठों की रिपोर्ट सौंपी. रिपोर्ट में कहा गया कि अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 की घटनाएं न तो सहज और न ही अनियोजित थीं. अप्रैल 2017 में एक विशेष सीबीआई अदालत ने आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी , उमा भारती , विनय कटियार और कई अन्य लोगों के खिलाफ आपराधिक साजिश के आरोप तय किए. 30 सितंबर 2020 को अदालत ने लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार और कई अन्य सहित सभी 32 आरोपियों को साक्ष्यों के आधार पर मामले से बरी कर दिया. जब बाबरी मस्जिद ध्वस्त की गई तो उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे. जबकि उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार थी.
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