Dollar Update: आने वाले दिनों में भी अगर विदेशी निवेश नहीं लौटता और डॉलर की डिमांड यूं ही बनी रहती है, तो रुपया और नीचे जा सकता है.
Dollar Update: भारतीय रुपया मंगलवार को शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 18 पैसे गिरकर 86.88 पर पहुंच गया. यह इस महीने के सबसे निचले स्तर के करीब है. रुपये पर यह दबाव कई वजहों से बढ़ा, जैसे विदेशी पूंजी की निकासी, डॉलर की बढ़ती मांग और घरेलू बाजार का कमजोर प्रदर्शन. विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले दिनों में यह गिरावट और गहरा सकती है.
निवेशकों की बेचैनी ने बिगाड़ी हालत
फॉरेक्स एक्सपर्ट्स के अनुसार, आयातकों की ओर से लगातार डॉलर की मांग बनी हुई है, जिससे रुपये पर दबाव और बढ़ गया है. आयात करने वाली कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय भुगतान के लिए डॉलर की जरूरत होती है, और जब ये मांग बढ़ती है तो रुपये की कीमत नीचे गिरने लगती है. इसके साथ-साथ, विदेशी निवेशक भी अपनी पूंजी भारतीय बाजार से निकाल रहे हैं, जिससे रुपये को और झटका लगा है. यह डबल मार रुपये को संभलने नहीं दे रही.
विदेशी पूंजी का बहाव बना चिंता की वजह

विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) ने सोमवार को ही ₹6,082 करोड़ की इक्विटी की बिकवाली की, जो रुपये की गिरावट की प्रमुख वजहों में से एक रही. जब भी बड़े निवेशक भारतीय बाजार से पैसा निकालते हैं, तो डॉलर की डिमांड बढ़ती है और रुपये की कीमत नीचे जाती है. बाजार में इस समय अनिश्चितता का माहौल है, जिससे निवेशक सतर्क हो गए हैं और सुरक्षित विकल्पों की तरफ रुख कर रहे हैं.
RBI की सीमित दखल, लेकिन नजर बनाए हुए है
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) रुपये को पूरी तरह गिरने से बचाने के लिए कभी-कभी बाजार में हस्तक्षेप करता है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि फिलहाल आरबीआई रुपये को धीरे-धीरे गिरने दे रहा है. यह रणनीति इसलिए अपनाई गई है ताकि विदेशी निवेशकों को यह न लगे कि मुद्रा कृत्रिम रूप से मजबूत रखी जा रही है. हालांकि, अगर गिरावट की रफ्तार तेज होती है तो आरबीआई और आक्रामक हस्तक्षेप कर सकता है.
ग्लोबल फैक्टर से नहीं मिली राहत
मंगलवार को घरेलू शेयर बाजारों में हल्की बढ़त तो दर्ज हुई, लेकिन वह रुपये को संभाल नहीं सकी. सेंसेक्स 51 अंक ऊपर और निफ्टी 18 अंकों की तेजी के साथ बंद हुए, लेकिन इस मजबूती का असर रुपये पर नहीं पड़ा. वहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्रेंट क्रूड ऑयल $70.07 प्रति बैरल पर स्थिर रहा और डॉलर इंडेक्स भी मजबूत बना रहा, जिससे अमेरिकी डॉलर को सपोर्ट मिला और रुपये पर दबाव बना रहा.
रुपये में गिरावट की मुख्य वजह है डॉलर की बढ़ती मांग, विदेशी निवेशकों की बिकवाली और शेयर बाजार से कमजोर समर्थन. आने वाले दिनों में भी अगर विदेशी निवेश नहीं लौटता और डॉलर की डिमांड यूं ही बनी रहती है, तो रुपया और नीचे जा सकता है. विशेषज्ञ फिलहाल 86.90 तक की गिरावट की संभावना जता रहे हैं.
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