Home Lifestyle जब राधा संग गोविंद निकले वृंदावन से, तो जयपुर बन गया ‘दूसरा वृंदावन’! क्या आप जानते हैं ये कहानी?

जब राधा संग गोविंद निकले वृंदावन से, तो जयपुर बन गया ‘दूसरा वृंदावन’! क्या आप जानते हैं ये कहानी?

by Jiya Kaushik
0 comment

Jaipur is known as Second Vrindavan: वृंदावन से आई परंपराएं, मूर्तियां और संतों की उपस्थिति ने जयपुर को सच में एक ‘दूसरा वृंदावन’ बना दिया. आज भी शहर की गलियों में भक्ति की वह रसधारा बहती है, जो उस बैलगाड़ी की गूंज से शुरू हुई थी.

Jaipur is known as Second Vrindavan: जयपुर में विराजित श्री राधा गोविंददेव जी की कहानी सिर्फ एक धार्मिक प्रतीक की नहीं, बल्कि संस्कृति, इतिहास और भक्ति परंपरा की भी है. वृंदावन से जयपुर तक की इस यात्रा में सिर्फ देव प्रतिमा ही नहीं आई, बल्कि साथ आई एक ऐसी परंपरा जिसने गुलाबी नगरी को आध्यात्मिक रंगों में रंग दिया. आइए जानते हैं इस ऐतिहासिक और आध्यात्मिक यात्रा की पूरी कहानी.

बैलगाड़ी में आया आराध्य स्वरूप

राधा गोविंद जी की जयपुर में स्थापना केवल एक धार्मिक घटना नहीं थी, बल्कि यह गुलाबी शहर को आध्यात्मिक राजधानी बनाने की नींव थी. औरंगजेब के दौर में जब मंदिरों को निशाना बनाया जा रहा था, तब चैतन्य महाप्रभु के शिष्य शिवराम गोस्वामी ने राधा गोविंद देव जी की मूर्ति को वृंदावन से बैलगाड़ी में बिठाकर सुरक्षित रूप से सांगानेर के गोविंदपुरा पहुंचाया. बाद में महाराजा जयसिंह द्वितीय ने इन्हें जयपुर के सिटी पैलेस के सूरज महल में विराजमान कराया.

मानसिंह प्रथम ने वृंदावन में बनवाया था भव्य मंदिर

करीब 480 साल पहले आमेर नरेश मानसिंह प्रथम ने वृंदावन में राधा गोविंद जी के लिए भव्य मंदिर का निर्माण करवाया. मंदिर निर्माण के लिए आमेर से कुशल कारीगरों को वृंदावन भेजा गया. राधारानी की प्रतिमा को उड़ीसा से लाकर गोविंद जी के संग विराजित किया गया, जिसने भक्ति की नई लहर को जन्म दिया.

जयपुर में भक्ति आंदोलन की नई धारा

जब राधा गोविंद जयपुर में विराजे, तब उनके साथ भक्ति परंपराओं का प्रवाह भी आया. ब्रज क्षेत्र से कई संप्रदाय, संत और आचार्य जयपुर आए. गौड़ीय, बल्लभ, निम्बार्क, हित हरिवंशीय और अन्य संप्रदायों ने जयपुर को दूसरा वृंदावन बना दिया. कहा जाता है की, सवाई जयसिंह द्वितीय ने निम्बार्क सम्प्रदाय के आचार्यों की सलाह पर जयपुर में विश्व का सबसे बड़ा अश्वमेघ यज्ञ सम्पन्न कराया. इससे जयपुर की धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतिष्ठा और भी बढ़ गई.

वृंदावन से आई लाडलीजी और मीरा की प्रतिमा

वृंदावन से आठ सखियों संग आईं राधारानी की लाडलीजी की मूर्ति को रामगंज में स्थापित किया गया. वहीं, 1656 में चित्तौड़गढ़ के किले से लाई गई मीरा की श्रीकृष्ण प्रतिमा को जगत शिरोमणि मंदिर में स्थापित किया गया, जिससे कृष्ण भक्ति की ऊंचाई और गहराई दोनों बढ़ी.

यह भी पढ़ें: सावन 2025 में शिवलिंग स्थापना: शिव पुराण से जानें घर में शिवलिंग रखने की सही विधि और पूजा का तरीका

You may also like

Feature Posts

Newsletter

Subscribe my Newsletter for new blog posts, tips & new photos. Let's stay updated!

@2025 Live Time. All Rights Reserved.

Are you sure want to unlock this post?
Unlock left : 0
Are you sure want to cancel subscription?
-
00:00
00:00
    -
    00:00
    00:00