Home Latest News & Updates नागपुर में बोले मोहन भागवत- विवादों से दूर रहना भारत की परंपरा, सद्भाव ही पहचान, भाईचारे पर जोर

नागपुर में बोले मोहन भागवत- विवादों से दूर रहना भारत की परंपरा, सद्भाव ही पहचान, भाईचारे पर जोर

by Sanjay Kumar Srivastava
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Mohan Bhagwat

Mohan Bhagwat: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने शनिवार को कहा कि विवादों में उलझना भारत के स्वभाव में नहीं है. इस देश की परंपरा ने हमेशा भाईचारे और सामूहिक सद्भाव पर जोर दिया है.

Mohan Bhagwat: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने शनिवार को कहा कि विवादों में उलझना भारत के स्वभाव में नहीं है. इस देश की परंपरा ने हमेशा भाईचारे और सामूहिक सद्भाव पर जोर दिया है. नागपुर में एक कार्यक्रम में बोलते हुए भागवत ने कहा कि भारत की राष्ट्रवाद की अवधारणा पश्चिमी व्याख्याओं से मौलिक रूप से भिन्न है. उन्होंने कहा कि हमारा किसी से कोई विवाद नहीं है. हम विवादों से दूर रहते हैं. विवाद करना हमारे देश के स्वभाव में नहीं है. एक साथ रहना और भाईचारा बढ़ाना हमारी परंपरा है. उन्होंने कहा कि दुनिया के अन्य हिस्से संघर्ष से भरी परिस्थितियों में विकसित हुए हैं. उन्होंने टिप्पणी की कि एक बार एक राय बन जाने के बाद उस विचार के अलावा कुछ भी अस्वीकार्य हो जाता है. वे अन्य विचारों के लिए दरवाजे बंद कर देते हैं और इसे ‘वाद’ कहना शुरू कर देते हैं.

भारत की राष्ट्रवाद की अवधारणा पश्चिम से अलग

भागवत ने यह भी कहा कि भारत की राष्ट्रवाद की अवधारणा पश्चिमी व्याख्याओं से मौलिक रूप से भिन्न है. उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि वे राष्ट्रवाद के बारे में हमारे विचारों को नहीं समझते, इसलिए उन्होंने इसे ‘राष्ट्रवाद’ कहना शुरू कर दिया. ‘राष्ट्र’ की हमारी अवधारणा पश्चिमी राष्ट्र की अवधारणा से अलग है. हमारे बीच इस बात पर कोई मतभेद नहीं है कि यह राष्ट्र है या नहीं. यह एक ‘राष्ट्र’ है और यह प्राचीन काल से अस्तित्व में है. उन्होंने कहा कि हम राष्ट्रीयता शब्द का प्रयोग करते हैं, राष्ट्रवाद का नहीं. राष्ट्र के प्रति अत्यधिक अभिमान के कारण दो विश्व युद्ध हुए, यही कारण है कि कुछ लोग राष्ट्रवाद शब्द से डरते हैं. भागवत ने कहा कि यदि हम पश्चिमी संदर्भ में राष्ट्र की परिभाषा पर विचार करें, तो इसमें आमतौर पर एक राष्ट्र-राज्य शामिल होता है जिसमें एक केंद्र सरकार क्षेत्र का प्रबंधन करती है.

कहा- हम सभी भारत माता की संतान

कहा कि हालांकि, भारत हमेशा से एक राष्ट्र रहा है. यहां तक कि विभिन्न शासनों और विदेशी शासन के काल में भी. आरएसएस प्रमुख ने कहा कि भारत की राष्ट्रीयता अहंकार या अभिमान से नहीं बल्कि लोगों के बीच गहरे अंतर्संबंध और प्रकृति के साथ उनके सह-अस्तित्व से उपजी है. हम सभी भाई हैं क्योंकि हम भारत माता की संतान हैं. धर्म, भाषा, खान-पान, परंपराएं या राज्य जैसा कोई अन्य मानव-निर्मित आधार नहीं है. उन्होंने कहा कि विविधता के बावजूद हम एकजुट हैं, क्योंकि यही हमारी मातृभूमि की संस्कृति है. उन्होंने ज्ञान के महत्व पर भी जोर दिया, जो बुद्धिमता की ओर ले जाता है. उन्होंने इस बात को भी रेखांकित किया कि व्यावहारिक समझ और सार्थक जीवन जीना महज जानकारी से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा कि सच्ची संतुष्टि दूसरों की मदद करने से मिलती है.

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