Chhath Sindoor Importance: छठ महापर्व पर बिहार की महिलाएं नाक से नारंगी रंग का सिंदूर लगाती हैं। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि नारंगी रंग के सिंदूर का क्या महत्व है और इसे नाक से क्यों लगाया जाता है.
26 October, 2025
Chhath Sindoor Importance: सनातन धर्म में सबसे लंबा और सबसे मुश्किल व्रत छठ महापर्व का माना जाता है. यह महापर्व यूपी और बिहार में मुख्यतः मनाया जाता है. चार दिनों तक चलने वाला यह व्रत इस साल 25 अक्तूबर को शुरू हो जाएगा और 28 अक्तूबर की सुबह सूर्य देव को अर्घ्य देते हुए खत्म होगा. बिहारवासियों के लिए यह केवल एक व्रत नहीं, बल्कि उनकी सांस्कृतिक पहचान और आस्था का प्रतीक है. सूर्य देवता और छठी मैया को समर्पित छठ महापर्व पर बिहार की महिलाएं नारंगी रंग का सिंदूर नाक से लेकर माथे तक लगाती हैं। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि नारंगी रंग के सिंदूर का क्या महत्व है और इसे नाक से क्यों लगाया जाता है.
नारंगी रंग के सिंदूर का महत्व
बाजार का लाल सिंदूर केमिकल मिलाकर बनाया जाता है, इसलिए इसे पवित्र नहीं माना जाता। छठ पूजा हो या कोई त्योहार, बिहार की महिलाएं शुभ अवसर पर नारंगी सिंदूर ही लगाती हैं। बिहार में नारंगी सिंदूर लगाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। दरअसल, नारंगी सिंदूर को सबसे पवित्र माना जाता है। इसे ऊर्जा, आध्यात्मिकता और शौर्य से जोड़ा जाता है। नारंगी रंग सूर्य का प्रतीक भी है और छठ पूजा भगवान सूर्य को ही समर्पित है। इसलिए महिलाएं छठ पूजा या फिर शुभ अवसरों पर लाल के बजाय नारंगी सिंदूर लगाती हैं।

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नाक से सिंदूर क्यों लगाती हैं महिलाएं
बिहार की महिलाएं छठ पूजा पर नाक से लेकर पूरी मांग में सिंदूर लगाती हैं। नाक से सिंदूर लगाने का भी अलग महत्व है। माना जाता है कि छठ महापर्व पर नाक से सिंदूर लगाने का मतलब है कि महिलाएं पूरी श्रद्धा से सूर्य देव को अर्घ्य दे रही हैं। यह भी माना जाता है कि सिंदूर जितना लंबा लगाते हैं, पति की आयु उतनी ही लंबी होती है। इसलिए महिलाएं नाक से सिंदूर लगाती हैं। इस तरह से सिंदूर लगाने से घर परिवार में सुख-शांति रहती है। अपनी संस्कृति और पहचान को जिंदा रखते हुए महिलाएं आज भी नाक से सिंदूर लगाती हैं।
सूर्यदेव और छठी मैया की होती है पूजा
छठ महापर्व चार दिनों का कठोर व्रत होता है. पहले दिन नहाय खाय मनाया जाता है, जिसका मतलब है स्नान करके भोजन करना. इस दिन वर्ती नहाकर और शुद्ध सात्विक भोजन करके अपने मन को शुद्ध करते हैं. अगले दिन होता है खरना, जब व्रती पूरा दिन व्रत करके शाम को छठी मैया और सूर्यदेव की पूजा करते हैं और प्रसाद खाते हैं. इस दिन प्रसाद भी बांटा जाता है. तीसरा दिन है संध्या अर्घ्य का, इस दिन व्रती पूरा दिन व्रत रखकर शाम को घाट पहुंचते हैं और छठी मैया की पूजा करते हैं. व्रती पानी में खड़े होकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं. अगले दिन सुबह-सुबह वर्ती घाट पहुंचकर उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं और इसी के साथ छठ व्रत का समापन होता है.
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