Unnao Rape Case: उन्नाव दुष्कर्म मामले की पीड़िता ने शनिवार को सीबीआई से संपर्क कर तत्कालीन जांच अधिकारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की है.
Unnao Rape Case: उन्नाव दुष्कर्म मामले की पीड़िता ने शनिवार को सीबीआई से संपर्क कर तत्कालीन जांच अधिकारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की है.इस मामले में पूर्व भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को दोषी ठहराया गया है. पीड़िता का आरोप है कि जांच अधिकारी की पूर्व विधायक सेंगर के साथ मिलीभगत है. महिला ने यह भी दावा किया कि उसे और उसके परिवार को विभिन्न पक्षों से धमकियां मिल रही हैं. यह घटनाक्रम दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा हाल ही में सेंगर को सशर्त जमानत दिए जाने और उसकी आजीवन कारावास की सजा को निलंबित किए जाने के बाद बढ़ते आक्रोश के बीच सामने आया है. हालांकि, सेंगर जेल में ही रहेगा क्योंकि वह दुष्कर्म पीड़िता के पिता की हिरासत में मौत के मामले में 10 साल की सजा भी काट रहा है.
कहा-जाली स्कूल दस्तावेजों का हुआ इस्तेमाल
अपनी शिकायत में पीड़िता ने आरोप लगाया कि जांच अधिकारी ने बेईमानी से, दुर्भावना से इस तरह से जांच की कि सेंगर और अन्य आरोपी जानबूझकर तथ्यों में हेरफेर करके मनचाहा परिणाम हासिल कर सकें. पीड़िता ने आरोप लगाया कि जांच अधिकारी ने आरोप पत्र में जाली स्कूल दस्तावेजों का इस्तेमाल किया, जिसमें उसे एक सरकारी स्कूल की छात्रा दिखाया गया और उसकी जन्मतिथि भी अलग लिखी गई, जबकि वास्तविकता में उसने कभी उस स्कूल में दाखिला नहीं लिया था. पीड़िता ने यह भी दावा किया कि अधिकारी ने आरोप पत्र में उल्लेख किया कि वह हीरा सिंह नाम की एक महिला का मोबाइल फोन इस्तेमाल कर रही थी, इस बात को भी जांच अधिकारी ने झूठ बोला था. उसने यह भी दावा किया कि आरोप पत्र में कई बयान झूठे तरीके से उससे जोड़े गए हैं.
अधिकारी के खिलाफ नहीं की गई कोई कार्रवाई
छह पन्नों की शिकायत में पीड़िता, जो 2017 में दुष्कर्म के समय नाबालिग थी, ने दावा किया कि उसने पहले भी शिकायत दर्ज कराई थी, लेकिन अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई. सेंगर को दोषी ठहराने वाले ट्रायल कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए पीड़िता ने जांच अधिकारी पर आरोपियों (सेंगर और अन्य) को अभियोजन से बचाने के लिए उनके साथ मिलीभगत करने का आरोप लगाया. सीबीआई ने ट्रायल कोर्ट की टिप्पणियों को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी. मुकदमे के दौरान सीबीआई ने कहा था कि पीड़िता द्वारा इस्तेमाल किए गए मोबाइल फोन पर जांच अधिकारी के दावे महज राय थे, निर्णायक सबूत नहीं, और केवल इसी आधार पर यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि अधिकारी आरोपी का पक्ष ले रहा था. मामले में और भी बहुत कुछ है, क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि जांच निष्पक्ष रूप से नहीं की गई थी.
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