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यूं ही नहीं बन गया इंजीनियरिंग मार्वल! चिनाब पुल को बनाने में आई थी ये बड़ी कठिनाइयां?

by Rishi
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Chenab Bridge Inauguration: चिनाब रेल पुल, जो दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे आर्च ब्रिज है, इसके निर्माण में कई गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा. सबसे बड़ी चुनौती थी इसकी भौगोलिक स्थिति.

Chenab Bridge Inauguration: आज भारत में दुनिया के सबसे ऊंचे रेलवे ब्रिज का उद्घाटन किया गया है. पीएम मोदी ने चिवाब नदी पर बने इस पुल पर हरी झंडी दिखाकर देश को एक और बड़ी सौगात दी है. इस पुल की ऊंचाई एफेल टॉवर से भी ज्यादा है. नदी तल से इसकी ऊंचाई 359 मीटर है. ये एक रेलवे आर्च ब्रिज है. इसको इंजीनियरिंग का चमत्कार इसलिए माना जा रहा है क्योंकि ये काफी दुर्गम मार्ग पर बड़ी मशक्कत के बाद बनाया गया है. इस पुल को भूकंप रोधी, तीव्र वायु रोधी डिजाइन से बनाया गया है. लेकिन इस पुल को बनाने में इंजीनियर्स को भी काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा था.

चिनाब पुल को बनाने में क्या चुनौतियां आई सामने?

चिनाब रेल पुल, जो दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे आर्च ब्रिज है, इसके निर्माण में कई गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा. सबसे बड़ी चुनौती थी इसकी भौगोलिक स्थिति, क्योंकि यह हिमालय की जटिल और अस्थिर भू-संरचना वाले रियासी जिले में चिनाब नदी पर बनाया गया है. यह क्षेत्र भूकंपीय जोन V में आता है, जहां रिक्टर पैमाने पर 8 तीव्रता तक के भूकंप का खतरा रहता है. इसके अलावा, 266 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार वाली हवाओं और -10 डिग्री से 40 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान की चरम परिस्थितियों को झेलने के लिए पुल का डिज़ाइन अत्यंत मजबूत और सुरक्षित बनाना आवश्यक था.निर्माण स्थल तक पहुंच भी एक बड़ी समस्या थी, क्योंकि शुरुआत में कोई सड़क मार्ग उपलब्ध नहीं था, और सामग्री को हेलीकॉप्टर या 205 किलोमीटर की अप्रोच सड़क, जिसमें 26 किलोमीटर की लाइन शामिल थी, के माध्यम से ले जाना पड़ता था.

डिजाइन को लेकर भी इंजीनियर थे चिंतित

दूसरी प्रमुख चुनौती थी डिज़ाइन और सुरक्षा संबंधी चिंताएं, जिनके कारण परियोजना में कई बार देरी हुई. 2002 में मंजूरी मिलने के बावजूद, 2008 में स्थिरता और सुरक्षा को लेकर आशंकाओं के कारण निर्माण कार्य रोक दिया गया, और 2010 में डिज़ाइन में बदलाव के बाद ही काम दोबारा शुरू हुआ. इसके लिए भारतीय और अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन करते हुए, IIT, IISc, और DRDO जैसे संस्थानों के साथ-साथ वैश्विक विशेषज्ञों की सलाह ली गई. निर्माण में 28,000 मीट्रिक टन स्टील और 46,000 क्यूबिक मीटर कंक्रीट का उपयोग हुआ, जिसे हिमालय की कठिन परिस्थितियों, जैसे भारी बारिश, भूस्खलन, और ठंड, के बीच संभालना चुनौतीपूर्ण था. इसके बावजूद, पर्यावरणीय संरक्षण और नदी के प्राकृतिक प्रवाह को बिना छेड़छाड़ के निर्माण पूरा करना भी एक जटिल कार्य था.

क्या है पुल की खासियत?

इस पुल की कुल लंबाई की बात करें तो ये 1,315 मीटर लंबा है. ये पुल करीब 100 मंजिला इमारत से भी उंचा है. इस पुल का निर्माण के बाद अब कटरा से श्रीनगर के बीच दूरी काफी कम हो जाएगी. ये दूरी समय के मामले में कम होगी. अब श्रीनगर पहुंचने में करीब 3 घंटे का समय ही लगेगा. इससे पहले यहां ट्रेन से पहुंचने का कोई भी रास्ता नहीं था.

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