Repo Rate: जो MPC की बैठक 4 जून को शुरू हुई थी उसका आज अंतिम दिन था. आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा के सुपरविजन में हुई इस बैठक में रेपो रेट पर ये फैसला किया गया.
Repo Rate: भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो रेट को लेकर आज एक बड़ा फैसला लिया है. आज लगातार तीसरी बार RBI ने रेपो रेट में कटौती की है. इस बार डायरेक्ट 50 बेसिस पॉइंट्स यानी 0.50 फीसदी की कटौती करने का फैसला किया है. इस बारे में RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा ने शुक्रवार को घोषणा की है. इससे पहले रेपो रेट घटकर 6.00 से 5.50 फीसदी रह गया है.
गौर करने वाली बात है कि जो MPC की बैठक 4 जून को शुरू हुई थी उसका आज अंतिम दिन था. आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा के सुपरविजन में हुई इस बैठक में रेपो रेट पर ये फैसला किया गया. इससे पहले कई इकॉनमिक एक्सपर्ट्स ये अंदाजा लगा रहे थे कि रेपो रेट में 0.25 फीसदी कटौती की जाएगी. लेकिन इससे दुगनी कटौती हुई है. ये लगातार तीसरी बार है जब आरबीआई ने रेपो रेट में कटौती की है. इससे पहले 7 फरवरी को 0.25 प्रतिशत की कटौती की गई थी. इसके बाद 9 अप्रैल को 0.25 प्रतिशत की कटौती की गई थी.
रेपो रेट क्या है?
रेपो रेट वह ब्याज दर है जिस पर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालिक ऋण देता है. यह दर RBI की मौद्रिक नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसका उपयोग अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति, मुद्रास्फीति (inflation), और आर्थिक विकास को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है. जब RBI रेपो रेट बढ़ाता है, तो बैंकों के लिए उधार लेना महंगा हो जाता है, जिससे वे अपने ग्राहकों को अधिक ब्याज दरों पर ऋण देते हैं. इसके विपरीत, रेपो रेट कम होने पर उधार लेना सस्ता होता है, जिससे बैंकों द्वारा दिए जाने वाले ऋण भी सस्ते हो जाते हैं.
लोगों पर इसका प्रभाव
रेपो रेट का सीधा असर लोगों की जेब पर पड़ता है, क्योंकि यह बैंकों के ऋण और जमा की ब्याज दरों को प्रभावित करता है. उदाहरण के लिए, अगर रेपो रेट बढ़ता है, तो होम लोन, कार लोन, या अन्य कर्ज की EMI बढ़ सकती है, जिससे मासिक खर्च बढ़ता है और लोगों की बचत पर असर पड़ता है. दूसरी ओर, रेपो रेट कम होने पर ऋण सस्ते होते हैं, जिससे लोग अधिक खरीदारी या निवेश कर सकते हैं, जैसे घर या गाड़ी खरीदना. हालांकि, कम रेपो रेट से बचत खातों और सावधि जमा (FD) पर ब्याज भी कम हो सकता है, जिससे निवेशकों को कम रिटर्न मिलता है. इस तरह, रेपो रेट अर्थव्यवस्था और व्यक्तिगत वित्तीय फैसलों पर गहरा प्रभाव डालता है.
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