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जब पाकिस्तान जाकर फूट-फूटकर रोए Dev Anand, पढ़ें सदाबहार हीरो से जुड़े दिलचस्प किस्से

by Preeti Pal
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जब पाकिस्तान जाकर फूट-फूटकर रोए Dev Anand, पढ़ें सदाबहार हीरो से जुड़े दिलचस्प किस्से

Introduction

03 December, 2025

Dev Anand: बॉलीवुड में ‘स्टाइल’, ‘स्वैग’ और ‘कूलनेस’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल बहुत बाद में शुरू हुआ, लेकिन ये सब अगर किसी एक शख्स से शुरू हुआ, तो वो थे देव आनंद. आज जब हम उनके करियर और उनकी फिल्मों को देखते हैं, तो साफ लगता है कि वो अपने दौर से कई कदम आगे थे. हिंदी सिनेमा के पहले मॉडर्न, वेस्टर्न-इन्फ्लुएंस्ड, बहुत ही स्मार्ट और हमेशा यंग दिखने वाले हीरो, यानी असली ट्रेंडसेटर. वैसे भी कुछ लोगों की चमक इतनी नायाब होती है कि वो वक्त, सरहदें और जमाने की हर दीवार पार कर लेती है. देव आनंद ऐसे ही सितारे थे. उनकी पॉपुलैरिटी सिर्फ भारत तक ही नहीं रही. पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, अफगानिस्तान जैसे पड़ोसी देशों में भी उनका नाम उतनी ही मोहब्बत से लिया जाता था. इतना ही नहीं, हॉलीवुड के दिग्गज डायरेक्टर डेविड लीन, एक्टर ग्रेगरी पेक और फिल्ममेकर फ्रांसिस फोर्ड तक देव आनंद को पहचानते थे. ये उस दौर की बात है जब बॉलीवुड का नाम ठीक तरह से दुनिया में पहुंचा भी नहीं था. इसीलिए कहते हैं कि देव आनंद की कहानी सिर्फ एक एक्टर की कहानी नहीं, बल्कि एक ऐसे इंसान की जर्नी है जिसने सपनों की गठरी लेकर पूरी दुनिया को अपना मुरीद बनाया था.

Table of Content

  • जब दरवाज़े से लिपटकर रोए
  • बंबई का सफर
  • पुलिस ने किया लाठीचार्ज
  • अनोखा स्टाइल
  • जब गाइड बने देव आनंद
  • सुरैया और देव
  • नानी बनी विलेन

देव आनंद का जन्म पार्टिशन से पहले के पंजाब में हुआ था, यानी अब वो जगह पाकिस्तान का हिस्सा है. लाहौर के बड़े गवर्नमेंट कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के बाद जुलाई 1943 में उन्होंने जेब में सिर्फ 30 रुपए रखे, फ्रंटियर मेल पकड़ी और बंबई के लिए रवाना हो पड़े. तब शायद उन्हें नहीं पता था कि यही सफर उन्हें भारतीय सिनेमा का सबसे सदाबहार चेहरा बना देगा. खैर, देव आनंद की कहानी का सबसे इमोशनल मोड़ 55 साल बाद आया, जब वो पहली बार लाहौर लौटे. उनके दिल में इस शहर के लिए इतनी मोहब्बत दबी थी कि वो लौटते ही फूट पड़ी. 1999 की वो दोपहर देव आनंद कभी नहीं भूले, जब उस वक्त के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ देव आनंद लाहौर पहुंचे. कॉलेज के गेट पर चौकीदार तक उन्हें पहचानकर दंग रह गया. जैसे ही देव आनंद ने अपने पुराने कॉलेज को देखा, उनकी आंखें भर आईं. उन्होंने दरवाजे को गले लगाया और ऐसे रोए जैसे बचपन का कोई भूला हुआ हिस्सा अचानक सामने आ गया हो. वैसे, ये सच भी था. दरवाज़े से लिपटकर वो बार-बार एक ही नाम पुकार रहे थे-उषा. उषा वो लड़की थी जिससे देव आनंद कॉलेज के दिनों में प्यार करते थे. वो स्टेज पर बैठे-बैठे रोते रहे, दीवारों से लिपटकर रोते रहे. आप इसी से अंदाज़ा लगा सकते हैं कि देव आनंद पर्दे पर जितने स्टाइलिश दिखते थे, उससे कहीं ज्यादा अंदर से सेंसिटिव थे.

बंबई का सफर

वापस चलते हैं देव आनंद के बंबई के सफर पर…. जब वो लाहौर से पढ़ाई करके बंबई पहुंचे थे. तब देश आजादी के करीब था और पूरा शहर एनर्जी से भरा हुआ था. अब इतने बड़े शहर में 2 टाइम की रोटी भी कमानी थी, तो बंबई आकर उन्होंने कभी क्लर्क का काम किया तो कभी ब्रिटिश आर्मी के सेंसर डिपार्टमेंट में नौकरी की, लेकिन देव आनंद का मन हमेशा एक्टिंग के लिए तरसता रहा. फिर एक दोस्त ने फ़िल्म मेकर बाबूराव का नाम बताया और उनसे मिलने के लिए कहा. बाबूराव ने पहली ही मुलाकात में देव के चेहरे पर वो चमक देख ली थी, जिसकी उन्हें तलाश थी. उन्हें पुणे बुलाया गया और पहली फिल्म ‘हम एक हैं’ बननी शुरू हुई. लेकिन इस फिल्म के लिए देव आनंद के सामने एक अजीब शर्त रखी गई. दरअसल, देव आनंद के दांतों के बीच हल्का सा गैप था और डायरेक्टर चाहते थे कि इसे फिलर से भरा जाए. देव आनंद ने कोशिश की लेकिन कई दिनों के बाद भी उन्हें ये फिलर बिल्कुल अच्छा नहीं लगा.

पुलिस ने किया लाठीचार्ज

आखिरकार उन्होंने इसे हटवाया और कहा कि वो जैसे हैं, दुनिया उन्हें वैसे ही पसंद करे. देव आनंद की बात सच भी हुई. आगे चलकर दुनिया ने उन्हें पसंद ही नहीं बल्कि इतना पसंद किया कि कई फैन्स ने अपने दांत उनके जैसे बनाने की कोशिश कर डाली. दरअसल, नेपाल में ‘हरे राम हरे कृष्णा’, ‘जॉनी मेरा नाम’ और ‘इश्क इश्क इश्क’ की शूटिंग के टाइम देव आनंद के लिए फैन्स की दीवानगी टॉप पर थी. उस वक्त लड़के देवानंद जैसा हेयरस्टाइल पाने के लिए बालों पर गर्म तेल और बांस की कंघी का इस्तेमाल करते थे. यहां तक कि कुछ फैन्स अपने दांतों की बनावट बिगाड़कर देव जैसा गैप बनवाते थे. इतना ही नहीं, जब ‘दम मारो दम’ गाने की शूटिंग हो रही थी, तब काठमांडू की सड़कों पर ऐसी भीड़ थी कि पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा. लड़के ‘ज्वेल थीफ’ वाली टोपी और ब्लैक एंड व्हाइट शूज पहनकर खुद को देव साहब का क्लोन समझते थे. खैर, देव आनंद की पहली फिल्म ‘हम एक हैं’ 1946 में रिलीज़ हुई, लेकिन असली पहचान उन्हें 1948 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘जिद्दी’ से मिली. इसी फिल्म में किशोर कुमार ने भी अपना पहला गाना गाया था. इसके अगले ही साल यानी 1949 में देव आनंद ने अपने भाई चेतन आनंद के साथ अपनी कंपनी ‘नवकेतन’ शुरू की. इसकी दूसरी फिल्म ‘बाज़ी’ ने इतिहास बना दिया. ये गुरु दत्त के डायरेक्शन में बनने वाली पहली फिल्म थी. हॉलीवुड-स्टाइल और देव आनंद का गैम्बलर लुक, सबने मिलकर इस फिल्म को ब्लॉकबस्टर बना दिया.

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अनोखा स्टाइल

देव आनंद का स्टाइल शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. झुकी हुई चाल, गले में रंग-बिरंगे स्कार्फ, लंबी टोपियां और बिना रुके लगातार बोलते जाना- ये सब उनका ट्रेडमार्क बन गया था. कई कहते थे कि वे काली शर्ट पहनकर सड़क पर नहीं निकल सकते थे, क्योंकि लड़कियां बेहोश हो जाएंगी. लेकिन देव आनंद ने अपनी ऑटोबायोग्राफी रोमांसिंग विद लाइफ में इस बारे में लिखा और बताया कि ऐसा कुछ नहीं था. मतलब ये सारी बातें सिर्फ अफवाह थीं. हां, मगर ये सच है कि लड़कियां उनकी एक झलक पाने के लिए अपनी जान की भी परवाह नहीं करती थीं. वैसे सिर्फ लड़कियां ही नहीं बल्कि बड़े-बड़े नेता भी देव आनंद के फैन थे. जब वो ‘काला पानी’ की शूटिंग करने इंडोनेशिया गए तब वहां के राष्ट्रपति सुकर्णो खासतौर से देव आनंद को देखने आए थे. तब राष्ट्रपति के सम्मान में फिल्म का एक गाना दोबारा शूट किया गया था. इतना ही नहीं, मिस्र के राष्ट्रपति नासिर ने देव आनंद को फिल्मफेयर अवॉर्ड भी दिया था. और तो और चंबल के डाकू तक देव आनंद के फैन थे. एक बार वो चंबल में शूटिंग कर रहे थे, तो किसी ने उन्हें डाकुओं के आने की खबर दी. देव साहब ने जवाब दिया- “उनसे कहो कैमरा लेकर आएं. ये उनका आखिरी मौका होगा मेरे साथ फोटो खिंचवाने का. अगले दिन सच में डाकू आए और देव साहब से हाथ मिलाने, उन्हें गले लगाने और फोटो खिंचवाने में मस्त हो गए.

जब गाइड बने देव आनंद

1965 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘गाइड’ का सब्जेक्ट काफी अलग और रिस्क वाला था. प्यार, अधूरापन और स्पिरिचुअलिटी – इन तीनों के कॉम्बिनेशन वाली ऐसी फिल्म, हिंदी सिनेमा में पहले किसी ने नहीं बनाई थी. हैरानी की बात है कि इस कल्ट फिल्म को शुरुआत में खरीदने से सबने मना कर दिया था. हालांकि, टाइम ने इसे एक कल्ट क्लासिक का दर्जा दे दिया. एक इंटरव्यू में देव आनंद ने कहा था कि- “अगर लोग कहते हैं कि गाइड मेरा सबसे अच्छा काम है, तो उनकी बात मान लेनी चाहिए, लेकिन मैं इससे बेहतर काम भी कर सकता हूं. मैं देव आनंद हूं. आर.के. नारायण के नोवल पर बेस्ड इस फिल्म की कहानी एक गाइड और एक शादीशुदा डांसर के रिश्ते को दिखाती है. उस वक्त फिल्म भले ही बहुत बड़ी हिट नहीं हुई, लेकिन आज भारत की टॉप 10 बेस्ट फिल्मों की लिस्ट में जगह रखती है. फिर साल 1971 में ‘हरे राम हरे कृष्णा’ आई, जिसने देव आनंद की इमेज को और मॉर्डन बना दिया. ड्रग्स, हिप्पीज़ और रिश्तों की उलझन, ऐसा सब्जेक्ट जो 50-60 साल पहले बहुत ही बोल्ड माना जाता था. फिल्म का गाना ‘दम मारो दम’ आज तक एक पार्टी एंथम बना हुआ है.

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सुरैया और देव

देव आनंद की पर्सनल लाइफ भी किसी कहानी की तरह ही खूबसूरत थी. एक्ट्रेस सुरैया से उनका प्यार जगजाहिर था, लेकिन मजहब की दीवार बीच में आ गई और दोनों अलग हो गए. देव साहब हमेशा कहते थे कि काश कहानी का अंत कुछ और होता. मगर सुरैया उनकी यादों में हमेशा रहीं. उनकी मौत के दिन देव आनंद पूरे दिन अकेले बैठे रहे और उनकी आंखों में बस आंसू थे. दरअसल, सुरैया का स्टारडम, उनके रुतबे का एहसास देवानंद को लाहौर के दिनों से ही था. सुरैया उनकी फेवरेट एक्ट्रेसेस में से एक बन चुकी थीं. देवानंद अपनी बायोग्राफी ‘Romancing with Life’ में लिखते भी हैं कि, ‘मेरे जैसे एक सिंपल लड़के के अंदर अगर एक्टिंग की चाह पैदा हुई, तो कुछ एक्ट्रेस की वजह से और सुरैया उनमें से एक थीं’. 40 के दशक में सुरैया का जलवा ऐसा था, कि अकेले उनके नाम से ही फिल्में हिट हो जाया करती थीं.

सुरैया का स्टारडम

सुरैया ने कई शानदार किरदार निभाए, तो दूसरी तरफ उनके गाए गाने महफिलों में गूंजा करते थे. देव साहब ने उन दिनों को याद करते हुए अपनी बायोग्राफी में लिखा- ‘जब मैं स्टूडियोज में काम की तलाश के लिए जाता था, तब सुरैया का जलवा दिखता था. वो अपनी अंपाला कार में सवार होकर जैसे ही स्टूडियो के गेट पर पहुंचतीं, भीड़ उमड़ पड़ती. सेट पर पहुंचतीं, तो सन्नाटा हो जाता. लोग सुरैया को देखते ही रह जाते. वो इतनी बड़ी स्टार थीं कि, तब देवनांद के ख्याल में सुरैया से इश्क तो दूर, दोस्ती की बात भी नहीं आती थी. मगर फिर आया साल 1948 और फिल्म बनी ‘विद्या’. इसी फिल्म पर साथ काम करते-करते सुरैया और देव आनंद एक-दूसरे के करीब आए. देव आनंद अपनी किताब में इस फिल्म के एक सीन का जिक्र करते हैं. वो सीन कुछ ऐसा था- ‘सेट पर कैमरा रोल हुआ, गाना चला और सुरैया ने मुझे गले लगाया. उनकी सांसों की गर्माहट मैं साफ महसूस कर सकता था. मैंने उनके हाथों को चूमा और तभी डायरेक्टर ने जोर से कहा- ग्रेट शॉट’. ये वही सीन था, जहां से सुरैया और देव आनंद के प्यार का सफर शुरू हुआ.

नानी बनी विलेन

सुरैया को फूल बहुत पसंद थे. देव साहब इस बात का ख्याल हमेशा रखते थे. वो जब भी सुरैया से मिलते तो फूल देते थे. दूर जाते तो फूलों के साथ खत भेजते थे. उन्होंने सुरैया के साथ मिलकर फिल्म ‘अफसर’ बनाने की सोची. मगर फिल्म पूरी होते-होते देवानंद को सुरैया की तरफ से एक अजीब सी झिझक महसूस होने लगी. देव आनंद को ये बात खटकने लगी. ये खामोशी तब थी, जब दोनों के रिश्ते पर आनंद परिवार की मुहर लग चुकी थी. मगर धर्म को लेकर सुरैया के घरवालों की तरफ से इस रिश्ते पर ऐतराज बढ़ने लगा. ये बात देव आनंद को बहुत बाद में पता चली. एक दिन देव आनंद सुरैया से मिलने घर गए, तब उन्हें देखते ही सुरैया की नानी ने दरवाजा बंद कर दिया. देवानंद को लगा था कि उनकी कामयाबियों की वजह से हालात बदल जाएंगे. लेकिन सुरैया की नानी पीछे हटने के मूड में कतई नहीं थीं. तब देवानंद ने सुरैया से कोर्ट मैरिज करने के लिए कहा. लेकिन नानी की धमकियों की वजह से उन्होंने इनकार कर दिया. तब एक खूबसूरत कहानी ने दम तोड़ दिया. खैर, देव आनंद से जुड़े किस्से कहानियां और भी बहुत हैं… लेकिन वो फिर कभी सही…

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