Bangladesh: अमेरिका की कठपुतली अंतरिम सरकार की जिम्मेदारी संभाल रहे मोहम्मद यूनुस ने साजिश के तहत परिभाषित कानून में संशोधन करते हुए इस उपाधि को वापस लिया है.
Bangladesh: 1971 में पाकिस्तान से आजाद हुए बांग्लादेश के लोगों को अगर उस वक्त पूछा जाता कि बंग बंधु के नाम से प्रसिद्ध उनके नेता शेख मुजीबुर्रहमान को लेकर वो क्या सोचते हैं तो शायद आम बंगाली की आंखो में कृतज्ञता के आंसू होते. लेकिन अब आजादी के 54 साल बाद हालात बदल चुके हैं. बांग्लादेश में अमेरिकी और पाकिस्तानी प्रोपोगेंडा की वजह से लोग अपने स्वतंत्रता के नायक को भूल रहे हैं. उसकी प्रतिमाओं को तोड़ा गया, उसके नाम को हर जगह से मिटाया गया और अब बांग्लादेश के राष्ट्रपिता के रूप में उसकी पहचान को भी मिटाने की कोशिश हो रही है.
शेख मुजीबुर्रहमान से राष्ट्रपिता की उपाधि को वापस लिया गया
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने शेख मुजीबुर्रहमान से उनकी राष्ट्रपिता की उपाधि को वापस ले लिया है. इसके लिए अमेरिका की कठपुतली अंतरिम सरकार की जिम्मेदारी संभाल रहे मोहम्मद यूनुस ने साजिश के तहत परिभाषित कानून में संशोधन करते हुए इस उपाधि को वापस लिया है. हालांकि इतिहास को समझने वाले लोग ये भी जानते हैं कि इससे कभी मुजीबुर्रहमान की विरासत को नहीं मिटाया जा सकता है. इससे पहले शेख मुजीबुर्रहमान की तस्वीर को भी बांग्लादेश की करेंसी से हटाया गया था.
मुक्ति संग्राम की परिभाषा में भी परिवर्तन किया गया
एक बांग्लादेशी न्यूज पोर्टल के अनुसार ‘राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान’ इस शब्द, इसके अलावा संविधान के वे पार्ट जहां पर शेख मुजीबुर्रहमान का नाम था उनको हटाया गया है. इसके साथ ही डेली स्टार न्यूजपेपर की खबर में ये भी कहा गया कि अंतरिम सरकार द्वारा पेश किए गए अध्यादेश में मुक्ति संग्राम की परिभाषा में भी थोड़ा परिवर्तन किया गया है. पिछली परिभाषा में लिखा था कि मुक्ति संग्राम बंगबंधु के स्वतंत्रता के आह्वान के बाद ही शुरु हुआ था.
क्या कहता है नया नियम
नए नियम के अनुसार, जो लोग 26 मार्च से 16 दिसंबर, 1971 के बीच भारत में युद्ध प्रशिक्षण या युद्ध की तैयारी में शामिल थे, बांग्लादेश की आजादी के लिए प्रशिक्षण शिविरों में गए, पाकिस्तानी सैन्य बलों और उनके स्थानीय सहयोगियों (जैसे रजाकार, अल-बद्र, अल-शम्स, तत्कालीन मुस्लिम लीग, जमात-ए-इस्लामी, नेजाम-ए-इस्लाम और शांति समितियों के सदस्य) के खिलाफ हथियार उठाए, और उस समय सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम आयु के दायरे में थे, उन्हें स्वतंत्रता सेनानी के रूप में मान्यता दी जाएगी.
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