Save Aravalli Protest: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने अपने एक्स अकाउंट की प्रोफाइल पिक्चर को बदलकर ‘अरावली बचाओ’ का फोटो लगाया है.
18 December, 2025
Save Aravalli Protest: अरावली पहाड़ियों पर दिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सोशल मीडिया पर आक्रोश देखने को मिल रहा है, जिसे अब राजस्थान कांग्रेस का भी साथ मिल गया है. राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने अपने एक्स अकाउंट की प्रोफाइल पिक्चर को बदलकर ‘सेव अरावली’ का फोटो लगाया है. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अरावली पड़ाडियों पर 100 मीटर से कम की पहाड़ियों में खनन के आदेश दे दिए हैं, जिसके बाद पर्यावरण विद चिंता जता रहे हैं और राजस्थान में इसको लेकर विरोध देखने को मिल रहा है.
केंद्र सरकार से अपील
कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने केंद्र सरकार से अरावली की परिभाषा पर फिर से विचार करने का आग्रह किया, और चेतावनी दी कि इस पर्वत श्रृंखला को कोई भी नुकसान उत्तरी भारत के इकोलॉजिकल भविष्य के लिए एक गंभीर खतरा पैदा करेगा. गहलोत ने कहा, “अरावली को सिर्फ ऊंचाई से नहीं आंका जा सकता. इसका मूल्यांकन इसके इकोलॉजिकल महत्व के आधार पर किया जाना चाहिए,” उन्होंने कहा कि संशोधित परिभाषा ने उत्तरी भारत के भविष्य पर “एक बड़ा सवाल” खड़ा कर दिया है. उन्होंने नागरिकों से भी इस मुद्दे पर ध्यान आकर्षित करने के लिए अपनी ऑनलाइन डिस्प्ले पिक्चर बदलकर इस अभियान में भाग लेने का आग्रह किया.
आज मैं अपनी प्रोफाइल पिक्चर (DP) बदलकर #SaveAravalli अभियान का हिस्सा बन रहा हूँ। यह सिर्फ एक फोटो नहीं, एक विरोध है उस नई परिभाषा के खिलाफ जिसके तहत 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को 'अरावली' मानने से इंकार किया जा रहा है। मेरा आपसे अनुरोध है कि अपनी प्रोफाइल पिक्चर बदलकर… pic.twitter.com/pt9u1O8UpX
— Ashok Gehlot (@ashokgehlot51) December 18, 2025
क्यों जरूरी है अरावली रेंज
गहलोत ने लिखा कि अरावली रेंज थार रेगिस्तान के विस्तार और अत्यधिक गर्मी की लहरों के खिलाफ एक प्राकृतिक हरी दीवार के रूप में काम करती है, जो दिल्ली, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की रक्षा करती है. उन्होंने चेतावनी दी कि छोटी पहाड़ियों और तथाकथित गैप क्षेत्रों को खनन के लिए खोलने से मरुस्थलीकरण तेजी से बढ़ेगा. गहलोत ने वायु प्रदूषण पर भी चिंता जताई और कहा कि अरावली की पहाड़ियां और जंगल धूल भरी आंधियों को रोककर और प्रदूषकों को सोखकर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के “फेफड़ों” के रूप में काम करती हैं. उन्होंने कहा, “जब अरावली के होने के बावजूद प्रदूषण का स्तर इतना खतरनाक है, तो कोई कल्पना कर सकता है कि इसके बिना स्थिति कितनी विनाशकारी होगी.”
पानी के संकट पर प्रकाश डालते हुए, पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि अरावली का पथरीला इलाका बारिश के पानी को भूमिगत करके भूजल रिचार्ज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. उन्होंने कहा, “अगर पहाड़ियों को नष्ट कर दिया गया, तो पीने के पानी की कमी और बढ़ जाएगी, वन्यजीव गायब हो जाएंगे और पूरा इकोलॉजी खतरे में पड़ जाएगा.” गहलोत ने तर्क दिया कि, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, अरावली एक निरंतर श्रृंखला है और यहां तक कि छोटी पहाड़ियां भी ऊंची चोटियों जितनी ही महत्वपूर्ण हैं.
राजस्थान होगा सबसे ज्यादा प्रभावित
सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि अरावली पर्वत श्रृंखला सिकुड़ रही है. अरावली श्रृंखला का लगभग 90% हिस्सा अब 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों से बना है. इस स्थिति में, 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली चोटियों को अब अरावली पहाड़ियों का हिस्सा नहीं माना जाएगा और उसमें अब खनन किया जाएगा. अरावली श्रृंखला दिल्ली-NCR क्षेत्र से लेकर राजस्थान होते हुए गुजरात तक फैली हुई है. अरावली पहाड़ियों का 80 प्रतिशत हिस्सा राजस्थान में आता है. अगर 100 मीटर से छोटी अरावली पहाड़ियों को नष्ट किया जाता है, तो राजस्थान को सबसे ज़्यादा नुकसान होगा.
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