Home Lifestyle Research Reveals : डायबिटीज कंट्रोल करने से नहीं होंगे Pregnancy Complications, शोध में हुआ खुलासा

Research Reveals : डायबिटीज कंट्रोल करने से नहीं होंगे Pregnancy Complications, शोध में हुआ खुलासा

by Pooja Attri
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Pregnancy

Pregnancy Complications: ‘द लैंसेट जर्नल’ में प्रकाशित एक नई सीरीज के राइटर्स का कहना है कि गर्भकालीन मधुमेह के मामले बढ़ रहे हैं, जो बढ़ते मोटापे के कारण और ज्यादा गंभीर होते जा रहे हैं.

21 June, 2024

Diabetes Mellitus : ‘द लैंसेट जर्नल’ में प्रकाशित रिसर्च में पाया गया है कि शुरुआती प्रेग्नेंसी के दौरान गर्भकालीन डायबिटीज को कंट्रोल करने से प्रेग्ननेंसी में आने वाली कठिनाइयों को रोकने और बेहतर डिलीवरी होने में मदद मिल सकती है. द लैंसेट जर्नल में प्रकाशित एक नई सीरीज के राइटर्स का कहना है कि प्रेग्नेंसी के दौरान आई समस्याएं दुनियाभर में पाई जाने वाली आम दिक्कतों में से एक हैं. गर्भकालीन मधुमेह के मामले बढ़ रहे हैं, जो बढ़ते मोटापे के कारण और ज्यादा गंभीर होते जा रहे हैं.

क्या कहती है रिसर्च?

दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (All India Institute of Medical Sciences) के रिसर्चर्स समेत अन्य शोधकर्ताओं का कहना है कि यह स्थिति दुनियाभर में लगभग 7 प्रेग्नेंसी में से एक को प्रभावित करती है और आमतौर पर दूसरी या तीसरी तिमाही में इसका देर से परीक्षण और इलाज किया जाता है. उन्होंने कहा कि अगर इलाज न किया जाए तो गर्भकालीन मधुमेह से हाई ब्लड प्रेशर और सीजेरियन सेक्शन का खतरा बढ़ सकता है. वहीं, मेंटल हेल्थ की स्थिति और डिलीवरी के समय बच्चे के लिए कॉम्पलीकेशन हो सकती हैं. राइटर्स ने कहा कि प्रेग्नेंसी से जुड़ी स्थिति से मां के जीवन में बाद में हेल्थ से संबंधित समस्याएं पैदा होने की संभावना भी बढ़ सकती है. इससे टाइप 2 डायबिटीज और हार्ट डिजीज होने का भी खतरा रहता है.

सबूतों से क्या पता चलता है?

शोध के अनुसार गर्भकालीन डायबिटीज डेवलप होने के कारण प्रेग्ननेंसी से पहले भी दिक्कतें मौजूद हो सकती हैं और लेखकों के अनुसार, ग्लूकोज और ब्लड प्रेशर जैसे मेटाबॉलिज्म बदलाव का पता प्रारंभिक गर्भावस्था (14 सप्ताह से पहले) में लगाया जा सकता है. ऐसे में उन्होंने गर्भकालीन मधुमेह को रोकने और नियंत्रित करने के लिए तुरंत परीक्षण और इलाज का आह्वान किया है. उन्होंने कहा कि इससे गर्भावस्था और प्रसव से जुड़ी दिक्कतों को कम किया जा सकता है, साथ ही महिलाओं में बाद में जीवन में अन्य हेल्थ समस्याओं के विकसित होने का जोखिम भी कम हो सकता है.

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