Home Latest किशोरी को मिली गर्भपात की अनुमति, बंबई उच्च न्यायालय ने इस आधार पर दी यौन उत्पीड़न पीड़िता को राहत

किशोरी को मिली गर्भपात की अनुमति, बंबई उच्च न्यायालय ने इस आधार पर दी यौन उत्पीड़न पीड़िता को राहत

by Sanjay Kumar Srivastava
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Bombay High Court

यौन उत्पीड़न की शिकार किसी लड़की को उसके अवांछित गर्भ को जारी रखने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.

Mumbai: बंबई उच्च न्यायालय ने चिकित्सा विशेषज्ञों की प्रतिकूल रिपोर्ट के बावजूद 12 वर्षीय लड़की को 28 सप्ताह का गर्भ गिराने की अनुमति देते हुए कहा कि यौन उत्पीड़न की शिकार किसी लड़की को उसके अवांछित गर्भ को जारी रखने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. न्यायालय ने कहा कि अगर उसे उसकी इच्छा के विरुद्ध बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर किया जाता है तो न्यायालय उसे अपने जीवन का मार्ग तय करने के अधिकार से वंचित करेगा.

मेडिकल बोर्ड की राय में जोखिमभरा काम

लड़की की जांच करने के बाद एक मेडिकल बोर्ड ने राय दी थी कि लड़की की उम्र और भ्रूण के विकास के चरण को देखते हुए गर्भावस्था को समाप्त करने की प्रक्रिया अत्यधिक जोखिम भरी होगी. हालांकि, न्यायमूर्ति नितिन साम्ब्रे और न्यायमूर्ति सचिन देशमुख की पीठ ने 17 जून के अपने आदेश में कहा कि गर्भपात की अनुमति देनी होगी. उच्च न्यायालय ने कहा कि यह न्यायालय पीड़िता को उसकी इच्छा के विरुद्ध गर्भावस्था को जारी रखने के लिए मजबूर नहीं कर सकता क्योंकि ऐसी स्थिति में राज्य उसे अपने जीवन का तत्काल और दीर्घकालिक मार्ग तय करने के अधिकार से वंचित कर देगा.

चाचा ने किया था यौन उत्पीड़न

इस संबंध में अदालत ने कहा कि हमें इस बात पर भी संवेदनशील होने की आवश्यकता है कि एक महिला अपनी वैवाहिक स्थिति के बावजूद अपनी इच्छा से गर्भवती हो सकती है. हालांकि अवांछित या आकस्मिक गर्भावस्था के मामले में बोझ हमेशा गर्भवती महिला/पीड़िता पर पड़ता है. लड़की का उसके चाचा ने यौन उत्पीड़न किया था जिसके बाद उसके खिलाफ मामला दर्ज किया गया था. लड़की के पिता ने यौन उत्पीड़न के परिणामस्वरूप उसकी गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग करते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया.

सभी सुरक्षा प्रोटोकॉल का हो पालन

अदालत ने गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देते हुए कहा कि प्रक्रिया के दौरान सभी सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन किया जाएगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कोई जटिलता उत्पन्न न हो. उच्च न्यायालय ने कहा कि प्रक्रिया को बाल रोग विशेषज्ञ सहित एक चिकित्सा दल द्वारा किया जाना चाहिए. मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत, गर्भावस्था के 20 सप्ताह के बाद गर्भपात निषिद्ध है जब तक कि अदालत द्वारा इसकी अनुमति न दी जाए. अदालत ऐसे मामलों में गर्भपात की अनुमति दे सकती है यदि भ्रूण में असामान्यता है, गर्भवती महिला के स्वास्थ्य को खतरा है या वह यौन उत्पीड़न की शिकार है.

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