Kailash Mansarovar Yatra: जैन धर्म में कैलाश पर्वत को ‘अष्टपद’ कहा जाता है, जहां प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ ने निर्वाण प्राप्त किया था. बौद्ध धर्म में इसे ‘माउंट मेरु’ के रूप में पूजा जाता है.
Kailash Mansarovar Yatra: पवित्र कैलाश मानसरोवर यात्रा जो हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्म के अनुयायियों के लिए आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, आज पांच साल के लंबे अंतराल के बाद फिर से शुरू हो रही है. कोविड-19 महामारी और भारत-चीन के बीच सीमा तनाव के कारण 2019 के बाद बंद हुई इस यात्रा को पिछले साल अक्टूबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद फिर से शुरू करने की सहमति बनी थी. विदेश मंत्रालय ने लॉटरी सिस्टम के जरिए यात्रियों का चयन किया, और आज 30 जून से पहला जत्था उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रे से अपनी यात्रा शुरू कर रहा है.
क्या है इस यात्रा का धार्मिक महत्व?
कैलाश पर्वत, जिसकी ऊंचाई 6,638 मीटर है, को हिंदू धर्म में भगवान शिव और माता पार्वती का निवास स्थान माना जाता है. मान्यता है कि इस पर्वत पर शिव सतत ध्यान में लीन रहते हैं, जो ब्रह्मांड को संतुलित रखने वाली आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक है. मानसरोवर झील, जो 4,590 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, को ब्रह्मा जी द्वारा निर्मित माना जाता है. इस झील में स्नान करने और कैलाश पर्वत की परिक्रमा करने से भक्तों के पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है.
जैन धर्म में कैलाश पर्वत को ‘अष्टपद’ कहा जाता है, जहां प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ ने निर्वाण प्राप्त किया था. बौद्ध धर्म में इसे ‘माउंट मेरु’ के रूप में पूजा जाता है, जो आध्यात्मिक शुद्धि और मोक्ष का प्रतीक है. तिब्बती बोन धर्म में भी इसे ‘स्वास्तिक पर्वत’ के रूप में महत्व दिया जाता है. गुरु नानक के यहां ध्यान करने की भी मान्यता है, जो सिख धर्म के लिए इस स्थान को और भी खास बनाती है.
कितने दिन की होती है यात्रा?
इस साल यात्रा जून से अगस्त के बीच आयोजित की जाएगी, जिसमें 15 बैच, प्रत्येक में 50 यात्री, लिपुलेख दर्रा (उत्तराखंड) और नाथू ला दर्रा (सिक्किम) के रास्ते तिब्बत जाएंगे. लिपुलेख मार्ग से यात्रा 24 दिन और नाथू ला से 21 दिन की होगी. यात्रा की शुरुआत दिल्ली से होती है, जहां यात्रियों का मेडिकल टेस्ट दिल्ली हार्ट एंड लंग इंस्टीट्यूट में किया जाता है. इसके बाद, कुमाऊं मंडल विकास निगम (KMVN) और सिक्किम पर्यटन विकास निगम (STDC) यात्रियों की सहायता करते हैं.
यात्रा का खर्च लिपुलेख मार्ग के लिए लगभग 1.80 लाख रुपये और नाथू ला के लिए 2.50 लाख रुपये है. उत्तर प्रदेश और राजस्थान सरकार अपने यात्रियों को 1 लाख रुपये की सब्सिडी दे रही हैं.
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