Caste Census: मोदी सरकार ने 30 अप्रैल 2025 को घोषणा की कि अगली जनगणना में जाति आधारित डेटा भी शामिल किया जाएगा. इसके बाद से ही विपक्ष नोदी सरकार की नियत को लेकर भी सवाल खड़े कर रहा है.
देश में जातिगत जनगणना से जुड़ी बड़ी खबर सामने आ रही है. बताया जा रहा है कि 1 मार्च 2027 से जाति जनगणना शुरू की जा सकती है. मोदी सरकार ने 30 अप्रैल 2025 को घोषणा की कि अगली जनगणना में जाति आधारित डेटा भी शामिल किया जाएगा. इसके बाद से ही विपक्ष मोदी सरकार की नियत को लेकर भी सवाल खड़े कर रहा है.
क्या है जाति जनगणना और उसका उद्देश्य ?
जाति जनगणना का मतलब है देश की जनगणना के दौरान लोगों की जाति से संबंधित जानकारी भी एकत्र करना, ताकि यह पता चल सके कि देश में किस जाति के कितने लोग हैं. इसका उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक नीतियां बनाने में मदद करना है, जैसे कि आरक्षण, संसाधनों का बंटवारा, और वंचित वर्गों के कल्याण के लिए योजनाएं तैयार करना. भारत में 1931 तक ब्रिटिश शासन के दौरान जातिगत जनगणना होती थी, लेकिन आजादी के बाद इसे बंद कर दिया गया. 1951 से केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की गणना होती रही, जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और अन्य जातियों की जानकारी शामिल नहीं की गई.
सितंबर 2024 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने जाति जनगणना का समर्थन किया, लेकिन यह शर्त रखी कि इसका इस्तेमाल राजनीतिक फायदे के लिए नहीं, बल्कि पिछड़े समुदायों के कल्याण के लिए होना चाहिए. आरएसएस के इस रुख ने बीजेपी को नीतिगत बदलाव के लिए प्रेरित किया.
बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में जहां जाति-आधारित राजनीति महत्वपूर्ण है, बीजेपी को लगता है कि जाति जनगणना से वह OBC और दलित वोटरों को अपने पक्ष में कर सकती है. बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 के अंत में होने हैं, और वहां पहले से ही जाति सर्वे का अनुभव है, जिसका श्रेय विपक्ष ले रहा था. बीजेपी इस मुद्दे को अपने नाम कर चुनावी लाभ लेना चाहती है.
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