Home Latest 28 दिन की देरी और 5 लाख मुआवजा, आखिर क्या है इसके पीछे की कहानी, जानकर रह जाएंगे हैरान

28 दिन की देरी और 5 लाख मुआवजा, आखिर क्या है इसके पीछे की कहानी, जानकर रह जाएंगे हैरान

by Sanjay Kumar Srivastava
0 comment
Supreme Court

25 जून को शीर्ष अदालत ने देरी के लिए राज्य प्राधिकारियों को फटकार लगाते हुए 5 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया था. कोर्ट ने यूपी सरकार से अनुपालन पर रिपोर्ट मांगी थी.

New Delhi: सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद यूपी सरकार ने शुक्रवार को कोर्ट को बताया जेल से रिहाई में देरी पर आरोपी को 5 लाख रुपये का मुआवजा दे दिया है.बताया जाता है कि जमानत मिलने के बाद जेल से रिहाई में लगभग एक महीने की देरी हुई. जेल प्रशासन की लापरवाही का खामियाजा यूपी सरकार को भुगतना पड़ा. राज्य के धर्मांतरण विरोधी कानून के प्रावधानों के तहत आरोपी व्यक्ति को 29 अप्रैल को शीर्ष अदालत ने जमानत दे दी थी, लेकिन उसे गाजियाबाद जिला जेल से 24 जून को ही रिहा किया गया, जो 28 दिनों की देरी दर्शाता है. 25 जून को शीर्ष अदालत ने देरी के लिए राज्य प्राधिकारियों को फटकार लगाते हुए 5 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया था और यूपी सरकार से अनुपालन पर रिपोर्ट मांगी थी.

29 अप्रैल को मिली थी जमानत

उत्तर प्रदेश सरकार ने कोर्ट के निर्देश का पालन करते हुए मुआवजा दे दिया है. यह जानकारी शुक्रवार को राज्य के वकील ने न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ को दी. आरोपी के वकील ने राशि प्राप्त होने की पुष्टि की. शीर्ष अदालत ने 29 अप्रैल को आरोपी को जमानत दी और बाद में 27 मई को गाजियाबाद की एक निचली अदालत ने उसकी रिहाई जारी की. 25 जून को जब शीर्ष अदालत को पिछले दिन आोरपी की रिहाई के बारे में सूचित किया गया, तो उसने कहा कि स्वतंत्रता संविधान के तहत गारंटीकृत एक बहुत मूल्यवान और कीमती अधिकार है. शीर्ष अदालत ने कहा कि आरोपी ने एक तुच्छ गैर-मुद्दे के कारण कम से कम 28 दिनों के लिए अपनी स्वतंत्रता खो दी थी. पीठ ने गाजियाबाद के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा मामले की जांच का आदेश दिया.

आरोपी के खिलाफ दर्ज है कई केस

25 जून को राज्य के वकील ने कहा कि ट्रायल कोर्ट के 27 मई के आदेश में अधिनियम की धारा 5 की उप-धारा (1) को छोड़कर सभी विवरणों का उल्लेख किया गया था. इसलिए 28 मई को जेल अधिकारियों द्वारा सुधार के लिए याचिका दायर की गई थी. उन्होंने कहा कि चूंकि आवेदन का पहले निपटारा नहीं किया गया था, इसलिए याचिकाकर्ता को रिहा नहीं किया गया. वकील ने पीठ को आगे बताया कि आदेश के सुधार के बाद आरोपी को रिहा कर दिया गया था. आरोपी पर तत्कालीन आईपीसी की धारा 366 (अपहरण, अपहरण या महिला को उसकी शादी के लिए मजबूर करना आदि) और 2021 अधिनियम की धारा 3 और 5 (गलत बयानी, बल, धोखाधड़ी, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन द्वारा एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तन का निषेध) के तहत मामला दर्ज किया गया था.

ये भी पढ़ेंः UP: मुफ्त राशन का अनाज लेने पहुंचे थे और जैसे ही बैग खोला उड़ गए सबके होश! हरकत में प्रशासन

You may also like

Feature Posts

Newsletter

Subscribe my Newsletter for new blog posts, tips & new photos. Let's stay updated!

@2025 Live Time. All Rights Reserved.

Are you sure want to unlock this post?
Unlock left : 0
Are you sure want to cancel subscription?
-
00:00
00:00
Update Required Flash plugin
-
00:00
00:00