Home Entertainment मोहम्मद रफी का सुरैया से क्या था खास कनेक्शन? क्यों दिया था अपना कमरा ? पढ़ें सिंगर के 10 अनसुने किस्से

मोहम्मद रफी का सुरैया से क्या था खास कनेक्शन? क्यों दिया था अपना कमरा ? पढ़ें सिंगर के 10 अनसुने किस्से

by JP Yadav
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खून से लथपथ थे पैर, सुरैया ने आखिर क्यों दिया था अपना कमरा ? पढ़ें मोहम्मद रफी के 6 अनसुने किस्से

Introduction

10 Interesting Facts About Mohammed Rafi: ‘जिंदगी हम फकीरों से क्या ले गई, सर से चादर बदन से हवा ले गई’ यह शेर महान गायक मोहम्मद रफी पर बिल्कुल सटीक बैठता है. रफी साहब को जिन्होंने जाना, समझा और परखा तो मिजाज से फकीर ही पाया. ऐसा फकीर जिसने अपनी गायकी से करोड़ों दिलों में जगह बनाई. वक्त बदला, दौर बदला और अब तो सदी ही बदल गई, लेकिन मोहम्मद रफी के चाहने और सुनने वालों का कारवां घटने की बजाय बढ़ता रहा. रफी साहब ने हर मूड और मिजाज के गाने गाए और लोगों ने इन्हें खूब पसंद भी किया. अब 21वीं सदी में भी मोहम्मद रफी के लिए वही दीवानगी बरकरार है, जो पहले थी. मानसिक परेशानी में जो काम डॉक्टरों की दवाइयां नहीं कर पाती हैं वह उनके गीत कर जाते हैं. दर्द के नगमे गाकर जहां मोहम्मद रफी ने लोगों को तसल्ली दी तो उनके गाए खुशियों के गीत लाखों अरमानों को एकसाथ जिंदा कर देते हैं. इस स्टोरी में हम बताएंगे महान गायक मोहम्मद रफी की जिंदगी और गायकी से जुड़े अनसुने किस्से.

Table Of Content

  • फकीर ने कर दी थी महान बनने की भविष्यवाणी
  • रफी का वह गीत जिसके बिना अधूरी है शादी
  • कभी नाई की दुकान में काटते थे बाल
  • एक गाने की वजह से बन गई बात
  • 13 साल में दी पहली परफॉर्मेंस
  • श्याम सुंदर ने दिया पहला ब्रेक
  • सुरैया ने क्या दिया रफी को अपना कमरा
  • 19 वर्ष में हो गई थी शादी
  • सुरैया ने क्या दिया रफी को अपना कमरा
  • रफी की कब्र से मिट्टी ले गए थे लोग

फकीर ने कर दी थी महान बनने की भविष्यवाणी

मोहम्मद रफी का जन्म 24 दिसंबर, 1924 को पंजाब के एक छोटे से गांव में हुआ. ग्रामीण जीवन को उन्होंने बखूबी जिया. गुल्ली डंडा से लेकर हर वह खेल जो गांव में खेले जाते हैं उनका आनंद मोहम्मद रफी ने भी लिया. बावजूद इसके बचपन से ही उनमें सादगी वाला मिजाज रहा. हां, संगीत के प्रति उनका लगाव था. बचपन में शादी-समारोह या अन्य आयोजन होते तो उनमें बजने वाला संगीत उन्हें खूब पसंद आता. शादी में जाने की हसरत पूरी नहीं होती तो वह दूर से ही समारोह में गाए गीतों को सुनते. गांव में एक फकीर अक्सर आया करता था. गांव की गलियों में गाना गाते हुए एक फकीर को देखकर मोहम्मद रफी ऐसे प्रभावित हुए कि रोजाना उसे सुनने का इंतजार करते थे.

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उस फकीर की नकल उतारते हुए बाल मोहम्मद रफी खुद भी रियाज किया करते थे. फकीर की बानगी और गीत मोहम्मद रफी को खूब पसंद आते. वह उस फकीर के पीछे-पीछे घूमा करते थे. फकीर भी कभी मुस्कुराकर तो कभी हालचाल पूछकर मोहम्मद रफी को घर लौटा दिया करता था. एक दिन मोहम्मद रफी उस फ़कीर के पीछे-पीछे चलने लगे तो उन्होंने गोद में उठा लिया. प्यार-दुलार करने के बाद फकीर ने बच्चे रफी से कहा- ‘जा बच्चा तू एक दिन बहुत बड़ा आदमी बनेगा. दुनिया तेरे नाम की दीवानी होगी’ यह बात सबके सामने फकीर ने कही. आसपास के लोगों ने सुनी, लेकिन बचपन में मोहम्मद रफी को यह बात समझ नहीं आई, लेकिन फकीर की दुआ की चर्चा जरूर पूरे गांव में हुई. मोहम्मद रफी आगे चलकर स्वर सम्राट मोहम्मद रफी के नाम से पहचाने गए. कहते हैं कि मोहम्मद रफी साहब को एक फकीर की दुआ लगी थी और वह महान शख्सियत बन गए, जिन्हें जमाना सदियों तक भूला नहीं पाएगा.

रफी का वह गीत जिसके बिना अधूरी है शादी

‘आदमी सड़क का’ की गीत ‘आज मेरे यार की शादी है’ पर बिना डांस किए भारत में कोई शादी पूरी नहीं मानी जाती है. यह ऐसा गीत है जो हर किसी को भी झूमने पर मजबूर कर देता है. हिंदी और पंजाबी समेत देश की विभिन्न भाषाओं में करीब 30,000 गीत गाने वाले मोहम्मद रफी ने सिर्फ 55 साल की उम्र में दुनिया को अलविद कह दिया. खुदा उन्हें अगर और उम्र देता तो हिंदी फिल्मी गीतों का कारवां और लंबा और सुरों से भरपूर होता है.

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कभी नाई की दुकान में काटते थे बाल

6 भाई-बहनों के परिवार में मोहम्मद रफी दूसरे सबसे बड़े भाई थे. घर में उन्हें सब प्यार से फिक्को बुलाया करते थे. एक रूढ़िवादी परिवार में जहां नाच-गाने पर पाबंदी थी, लेकिन मोहम्मद रफी का संगीत के प्रति लगाव बचपन से ही था. 9 साल की उम्र के रहे होंगे जब मोहम्मद रफी का परिवार लाहौर (पाकिस्तान) शिफ्ट हो गया. यहां के एक स्कूल में उनका दाखिला करा दिया गया. रफी को तो संगीत का शौक था उन्हें कभी पढ़ाई में दिलचस्पी ही नहीं थी. पढ़ाई में रुझान कम होने के चलते पिता ने उन्हें बड़े भाई के साथ खानदानी नाई की दुकान में काम सीखने के लिए लगा दिया. इसके बाद दुकान में वह बाल काटना सीखने लगे. कुल मिलाकर सिर्फ 9 साल के मोहम्मद रफी नूर मोहल्ले के भाटी गेट की दुकान पर नाई बन चुके थे और वह नाई जो रोजाना घंटों बाल काटता. वर्ष 1933 का कोई महीना था जब पंडित जीवनलाल बाल कटवाने पहुंचे, जिन्हें संगीत में महारत हासिल थी.

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एक गाने की वजह से बन गई बात

नाई की दुकान में बाल काटने के दौरान मोहम्मद रफी अमृतसर स्टाइल में वारिस शाह का ‘हीर’ गुनगुना रहे थे. नन्हे रफी की आवाज में गाना सुनकर जीवनलाल बहुत प्रभावित हुए. रफी को जीवनलाल ने ऑडिशन के लिए बुलाया. ऑडिशन क्लीयर करने के बाद जीवनलाल ने ही उन्हें पंजाबी संगीत की ट्रेनिंग दी. उनकी उस्तादी में हुनरमंद रफी गायिकी में माहिर होते चले गए. इसके बाद बड़े भाई मोहम्मद हमीद ने संगीत के प्रति इनकी रुचि को देखा और रफी को उस्ताद अब्दुल वाहिद खान के पास संगीत शिक्षा लेने के लिए कहा.

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13 साल में दी पहली परफॉर्मेंस

जीवनलाल और उस्ताद अब्दुल वाहिद खान से संगीत की शिक्षा लेने वाले मोहम्मद रफी कम उम्र में ही गायिकी में दक्ष हो गए. कम उम्र के हिसाब से गाना गाने में माहिर मोहम्मद रफी ने सिर्फ 13 वर्ष की उम्र में ऑल-इंडिया एक्जीबिशन (लाहौर) में पहली बार आम लोगों के बीच अपना हुनर दिखाते हुए परफॉर्मेंस दी. उनका कोई इरादा नहीं था और ना ही आयोजक ही परफॉर्मेंस दिलाना चाहते थे. हुआ यूं कि स्टेज पर बिजली नहीं होने पर उस जमाने के पॉपुलर सिंगर कुंदनलाल सहगल ने स्टेज पर गाने से साफ-साफ मना कर दिया था. ऐसे में आयोजकों ने मजबूरी में नन्हे मोहम्मद रफी साहब से परफॉर्म करने की गुजारिश की. नन्हे रफी ने इस मौके को लपक लिया. गीत खत्म हुआ तो तालियों की गड़गड़ाहट ने बता दिया कि मोहम्मद रफी ने कमाल की परफॉर्मेंस दी है. वहीं, गाना सुनने बैठे दर्शकों के बीच बैठे केएल सहगल ने प्रतिक्रिया में कहा था – ‘यह लड़का एक दिन बड़ा गायक बनेगा’. बड़े होने पर मोहम्मद रफी इतिहास रच दिया और अपने करियर में करीब 28,000 गाने गाए और सभी के सभी हिट ही रहे.

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श्याम सुंदर ने दिया पहला ब्रेक

बहुत कम लोग जानते होंगे कि डायरेक्टर श्याम सुंदर की मदद से रफी फिल्मों में आए. पहला गाना रहा ‘गल बलोच’ फिल्म का ‘परदेसी..सोनिए ओ हीरिए’ था, जदिसे खूब सराहा गया. यह अलग बात है कि एक्टर और प्रोड्यूसर नजीर ने मोहम्मद रफी को 100 रुपये और एक टिकट भेजकर बॉम्बे (अब मुंबई) बुलाया. यहां उन्होंने फिल्म ‘पहले आप’ (1944) का गाना ‘हिंदुस्तान के हम हैं’ रिकॉर्ड किया. हिंदी फिल्मों के महान संगीतकार नौशाद ने गाने की रिकॉर्डिंग के दौरान देशभक्ति गाने में साउंड इफेक्ट देने के लिए सभी सिंगर्स और कोरस गाने वालों को मिलिट्री वालों के जूते पहनाए थे. इस दौरान जूतों की आवाज से ही साउंड क्रिएट कर रिकॉर्ड किया गया था. बताया जाता है कि जब रिकॉर्डिंग पूरी हुई तो मोहम्मद रफी के पैरों से खून बह रहा था, लेकिन उनके चेहरे में चमक थी. ये चमक थी अपना पहला हिंदी गाना रिकॉर्ड करने की, जबकि पैर खून से सना था.

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19 वर्ष में हो गई थी शादी

मोहम्मद रफी के निधन के 8 साल बाद पत्नी बिलकिस ने एक इंटरव्यू में कबूला था कि शादी के समय मोहम्मद रफी की उम्र 19 वर्ष थी. वहीं, बिलकिस की उम्र सिर्फ 13 साल थी. उनके मुताबिक, उनके होने वाले पति महज 10 साल की उम्र से ही गाने लगे थे. बिलिकस को संगीत से खास लगाव नहीं था. मुंबई पहुंचने पर शुरुआती दिनों में रफी अपनी पत्नी के साथ डोंगरी (बोम्बे) की एक चॉल में रहते थे. इसके बाद वो भिंडी बाजार की एक चॉल में रहने लगे. यह अलग बात है कि मोहम्मद रफी को चॉल में रहना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था क्योंकि वह सुबह साढ़े 3 बजे उठकर रियाज करते थे और इसके लिए मरीन ड्राइव निकल जाते थे.

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सुरैया ने क्या दिया रफी को अपना कमरा

मोहम्मद रफी नहीं चाहते थे कि रियाज के चलते चॉल के आसपास रहने वाले लोगों को किसी तरह की परेशान हो. उस समय मरीन ड्राइव पर ही उस दौर की नामी सिंगर सुरैया का घर था. जब उन्होंने कई दिनों तक मोहम्मद रफी को यहां रियाज करते देखा तो एक दिन टोक दिया था कि वह रियाज के लिए यहां क्यों आते हैं? इसके बाद रफी ने उन्हें सारी बात बताई तो सुरैया ने अपने घर में ही एक कमरा रियाज के लिए दे दिया. इसके बाद वह यही पर आकर रियाज करते थे. फिल्मों में गाने मिलने लगे तो उन्होंने कोलाबा में एक फ्लैट खरीदा और अपने 7 बच्चों के साथ यहीं रहने लगे. उनके बड़े बेटे सईद पहली पत्नी बशीरा बीवी से हैं. दरअसल, बशीरा को तलाक देकर उन्होंने बिलकिस बानो से शादी की थी.

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रफी की कब्र से मिट्टी ले गए थे लोग

मोहम्मद रफी ने अपने फिल्मी करियर में एक से बढ़कर एक गीत गाए. उनका संगीत के प्रति लगाव ही था कि उनकी मौत भी गीत गाने के दौरान हुई. मोहम्मद रफी साहब के निधन (31 जुलाई, 1980) से कुछ दिन पहले कोलकाता (तब कलकत्ता) से कुछ लोग उनसे मिलने पहुंचे थे. वो चाहते थे कि रफी साहब काली पूजा के लिए भजन गाएं. बताया जाता है कि जिस दिन रिकॉर्डिंग होनी थी उस दिन उनके सीने में काफी दर्द हो रहा था. बावजूद इसके उन्होंने किसी को कुछ नहीं बताया और गाने गाए. इसके बाद 55 साल की उम्र में 31 जुलाई, 1980 को मोहम्मद रफी को हार्ट अटैक से निधन हो गया. उनके निधन ने लोगों को स्तब्ध कर दिया था. पूरे देश में माहौल गमगीन हो गया. कहा जाता है कि हर गली-मोहल्ले में मोहम्मद रफी की ही चर्चा हो रही थी. रफी साहब को लोग इतना अधिक चाहते थे कि उनके जनाजे में करीब 10 हजार लोग शामिल हुए थे. यह गायक के प्रति दीवानगी ही थी कि इसके बाद कुछ लोग तो उनकी कब्र से मिट्टी उठाकर अपने साथ ले गए थे.

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Conclusion

मोहम्मद रफी ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में करीब तीन दशक से भी ज्यादा समय तक अपनी गायकी का जादू चलाया. हिंदी फिल्मों में उन्होंने सर्वाधिक गाने गए, वहीं उन्होंने हिंदी के अलावा पंजाबी, बंगाली, गुजराती और कई अन्य भाषाओं में 7400 से ज्यादा गाने गाए.

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