Agni-5 Missile: अग्नि-5, जिसे मूल रूप से परमाणु-सक्षम मिसाइल के रूप में डिज़ाइन किया गया था, अब एक पारंपरिक हथियार के रूप में अपनी भूमिका का विस्तार कर रही है.
Agni-5 Missile: भारत अपनी रक्षा क्षमताओं को और मजबूत करने की दिशा में एक और ऐतिहासिक कदम उठाने जा रहा है. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने अपनी सबसे उन्नत इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल, अग्नि-5, को एक पारंपरिक (गैर-परमाणु) बंकर बस्टर मिसाइल में बदलने की योजना शुरू कर दी है. यह नया वैरिएंट 7.5 टन के भारी वारहेड से लैस होगा, जो दुश्मन के गहरे भूमिगत ठिकानों, कमांड सेंटरों और फोर्टिफाइड बंकरों को पल भर में तबाह करने में सक्षम होगा. यह कदम भारत की सामरिक और रणनीतिक ताकत को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा.
क्या है इस मिसाइल की खासियत?
अग्नि-5, जिसे मूल रूप से परमाणु-सक्षम मिसाइल के रूप में डिज़ाइन किया गया था, अब एक पारंपरिक हथियार के रूप में अपनी भूमिका का विस्तार कर रही है. इस मिसाइल की खासियत इसकी 5,000 किलोमीटर से अधिक की रेंज और अत्यधिक सटीक निशाना लगाने की क्षमता है. डीआरडीओ द्वारा विकसित यह नया संस्करण विशेष रूप से दुश्मन के उन ठिकानों को नष्ट करने के लिए तैयार किया जा रहा है, जो गहरे भूमिगत या मजबूत संरचनाओं में छिपे हैं. यह मिसाइल अमेरिका के जीबीयू-57 मैसिव ऑर्डनेंस पेनेट्रेटर जैसे बंकर बस्टर हथियारों को टक्कर देने की क्षमता रखेगी.
हाल के घटनाक्रमों से पड़ा प्रभाव
हाल के वैश्विक घटनाक्रम, विशेष रूप से मध्य पूर्व में इजरायल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव और अमेरिका के बंकर बस्टर हथियारों के उपयोग ने भारत को इस दिशा में तेजी से काम करने के लिए प्रेरित किया है. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत को अपनी सैन्य निगरानी और हमले की क्षमताओं को और मजबूत करने की आवश्यकता महसूस हुई. इस ऑपरेशन में भारत ने पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आतंकी ठिकानों को नष्ट किया था, जिसके जवाब में पाकिस्तान ने ड्रोन और मिसाइल हमले किए थे. इन घटनाओं ने भारत को अपनी रक्षा रणनीति में और अधिक आक्रामक और सटीक हथियारों को शामिल करने के लिए प्रेरित किया.
नया अग्नि-5 वैरिएंट कैसे करेगा काम ?
नया अग्नि-5 वैरिएंट न केवल बंकर बस्टर के रूप में काम करेगा, बल्कि इसमें एयरबर्स्ट वारहेड की क्षमता भी होगी, जो इसे और घातक बनाएगी. यह मिसाइल कैनिस्टराइज्ड तकनीक से लैस है, जिससे इसे आसानी से परिवहन और तैनात किया जा सकता है. डीआरडीओ के वैज्ञानिकों का दावा है कि इसकी सटीकता इतनी अधिक है कि यह सिंगल-डिजिट त्रुटि सीमा के साथ लक्ष्य को भेद सकती है. यह तकनीक भारत को अपने पड़ोसी देशों, विशेष रूप से चीन और पाकिस्तान जैसे प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ एक रणनीतिक बढ़त प्रदान करेगी.
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम भारत की ‘मेक इन इंडिया’ पहल का एक और उदाहरण है, जो स्वदेशी तकनीक पर आधारित है. यह मिसाइल न केवल भारत की सैन्य ताकत को बढ़ाएगी, बल्कि वैश्विक स्तर पर देश की स्थिति को भी मजबूत करेगी. हालांकि, इस परियोजना को लेकर कुछ चुनौतियां भी हैं. इतने भारी वारहेड को ले जाने वाली मिसाइल के लिए उन्नत तकनीक और संसाधनों की आवश्यकता होगी. डीआरडीओ ने इस दिशा में प्रारंभिक विकास शुरू कर दिया है, और उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में यह मिसाइल भारत की रक्षा प्रणाली का एक अभिन्न हिस्सा बन जाएगी.
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