Nanda Devi Raj Jat Yatra: वर्ष 2026 की यह यात्रा उत्तराखंड के लिए ऐतिहासिक होगी और पूरे देश-विदेश से श्रद्धालुओं को आकर्षित करेगी. यह सिर्फ यात्रा नहीं, बल्कि देवी के प्रति प्रेम और श्रद्धा का महोत्सव है.
Nanda Devi Raj Jat Yatra: भारत में अनेक धार्मिक यात्राएं होती हैं, लेकिन कुछ यात्राएं आस्था, परंपरा और विरासत का ऐसा संगम होती हैं, जो इतिहास का हिस्सा बन जाती हैं. ऐसी ही एक यात्रा है , नंदा देवी राजजात यात्रा, जो हर 12 साल में केवल एक बार होती है. यह सिर्फ एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि उत्तराखंड की संस्कृति और लोक आस्था का पर्व है. वर्ष 2026 में इसकी अगली यात्रा प्रस्तावित है, और तैयारियों की गूंज अभी से सुनाई देने लगी है.
देवी नंदा की विदाई की कथा से जुड़ी है यह परंपरा
नंदा देवी राजजात का इतिहास गढ़वाल और कुमाऊं के राजवंशों से जुड़ा है. लोककथाओं के अनुसार, मां नंदा देवी पार्वती का ही रूप हैं और उन्हें कैलाश में भगवान शिव की ससुराल भेजने की यह विदाई यात्रा है. कहा जाता है कि एक बार मां नंदा मायके आई थीं, लेकिन कुछ कारणों से 12 साल तक ससुराल नहीं लौट पाईं. बाद में पूरे सम्मान के साथ उन्हें विदा किया गया, और तभी से यह परंपरा शुरू हुई.
चमोली से शुरू होकर यह यात्रा 250 किलोमीटर की कठिन पैदल दूरी तय करते हुए होमकुंड तक जाती है. इसे दुनिया की सबसे कठिन धार्मिक यात्राओं में गिना जाता है.

चार सींग वाला बकरा है यात्रा की खासियत
इस यात्रा की सबसे अनोखी बात है “चौशींग्या खाडू” यानी चार सींग वाला पवित्र बकरा. इसे देवी का सहायक माना जाता है, और यह बकरा ही यात्रा का नेतृत्व करता है. मान्यता है कि यह बकरा हर 12 साल में एक बार ही जन्म लेता है. यात्रा शुरू होने से पहले इसकी तलाश भी एक विशेष परंपरा होती है. श्रद्धालु इसके पीठ पर देवी के लिए गहने, सिंगार और भेंट रखते हैं. यात्रा समाप्ति के बाद यह बकरा हिमालय की ओर चला जाता है, और फिर लौटकर नहीं आता.
धार्मिक रास्ता और सम्मिलित क्षेत्र
यात्रा की शुरुआत चमोली गांव से होती है, और नैनीताल, अल्मोड़ा, कटारमल, कुरुड़, आदि क्षेत्रों से विभिन्न डोलियां और छंतोलियां शामिल होकर नंदकेशरी में एकत्र होती हैं. वहां से यात्रा एक संगठित रूप लेती है और 250 किलोमीटर का कठिन पर्वतीय मार्ग तय कर होमकुंड तक जाती है, जहां अंतिम पूजा होती है.
पूजन विधि और आयोजन
नंदा देवी की यात्रा स्वर्ण प्रतिमा पर प्राण प्रतिष्ठा के साथ शुरू होती है. इसके बाद राज छंतोली, चौशींग्या खाडू और राजवंशियों की अगुवाई में देवी की विदाई की जाती है. भगवती को वस्त्र, आभूषण और मिष्ठान अर्पित कर उन्हें हिमालय के लिए रवाना किया जाता है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस बार आयोजन को भव्य और सुव्यवस्थित बनाने के लिए विभिन्न विभागों को आपसी तालमेल से कार्य करने और जनसुनवाई के जरिए सुझाव लेने के निर्देश दिए हैं.
अब तक कब-कब हुई यात्रा?
अब तक नंदा देवी की यह यात्रा इन वर्षों में संपन्न हो चुकी है:
1843, 1863, 1886, 1905, 1925, 1951, 1968, 1987, 2000, 2014
अब अगली यात्रा 2026 में होगी, जिसे हिमालयी महाकुंभ भी कहा जा रहा है.
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