90s Summer Vacation: 90 के दशक की गर्मियां सिर्फ छुट्टियां नहीं थीं, वो रिश्तों की कहानी थीं. नानी का घर, ट्रेन का सफर, कज़िन्स के साथ खेल, और रात की डरावनी कहानियां. इन सबमें जो अपनापन था, वो आज की fancy छुट्टियों में कहीं खो गया है. हो सकता है अब बच्चों के पास ज़्यादा सुविधाएं हों, लेकिन हम 90s वालों के पास वो यादें हैं, जो आज भी दिल को सुकून देती हैं.
90s Summer Vacation: कभी गर्मियां सिर्फ मौसम नहीं होती थीं, वो एक एहसास होती थीं- बेफिक्री का, रिश्तों का, और उस बचपन का जो बिना स्क्रीन के भी पूरी तरह जिंदा था. 90 के दशक में पलने-बढ़ने वालों के लिए “नानी के घर जाना” गर्मियों की सबसे बड़ी और बेसब्री से इंतज़ार की जाने वाली घटना होती थी. आज की पीढ़ी के लिए छुट्टियां प्लान की हुई होती हैं- वर्कशॉप, क्लासेस और इंस्टा स्टोरीज से भरी, पर उस दौर की छुट्टियां अन्प्लैन्ड जरुर होती थी, पर सबसे ज्यादा यादे भी उसी में बनती थीं. आइए, एक बार फिर लौटते हैं उन बीते पलों में…
वो ‘नानी का घर’ जहां बुनती थी यादें

गर्मियों की शुरुआत होती थी जब मम्मी फुसफुसाकर पूछती थीं, “इस बार कब जाएंगे नानी के घर?” उस एक सवाल में जितनी उत्सुकता होती थी, उतना ही प्लानिंग का माहौल बनता था. टिकटें हफ्तों पहले बुक हो जाती थीं, तसले में अचार डाला जाता था, और सूटकेस में आधी जगह आमों के लिए छोड़ दी जाती थी. जब पापा अपने काम में से 2 दिन की छुट्टी लेके सबको नानी के छोड़ने जाते थे. उस कई दिनों तक चलने वाली पैकिंग में जो सुकून था वो आज मिनटों में हुई पैकिंग से कई ज्यादा आराम देता था. उस घर के सपने कई दिनों पहले आने लगते थे जहां साल में एक ही बार जाना होता था. न AC, न fancy food फिर भी किसी फाइव-स्टा होटल से कम नहीं लगता था नानी का घर, क्योंकि वहां नानी का प्यार मिलता था.
जब ट्रैन में बैठना ही लग्जरी लगता था
आज जहां सफर का मतलब है फ्लाइट्स, टैक्सी और एयरपोर्ट सेल्फ़ीज, वहां उस समय सफर की असली जान होती थी ट्रेन की खिड़की से आती गरम हवा, और मम्मी के स्टील के डब्बे में रखी पूरी-सब्ज़ी. जब पापा Tinkle, Champak और चाचा चौधरी की कॉमिक्स की कहानियां सुनाते हुए पसीने पोछते थे. जब उस ट्रैन के डिब्बे में आस-पास बैठे यात्रियों से जान-पहचान हो जाती थी…. तब ऐसा लगता था जैसे सबअपने ही शहर के है, स्टेशनों पर कुल्हड़ वाली चाय और समोसे मिलते थे. और जब स्टेशन आने वाला हो तब वो बच्चो का चिलाना “आ रहा है नानी का घर!”
जब घर होता था एडवेंचर पार्क

उस वक्त Cousins सिर्फ रिश्तेदार नहीं होते थे, वो आपके पहले दोस्त, पहले रूममेट और पहले कॉमेडियन होते थे. जब आपके लिए सबसे पहले वो कज़िन्स हुआ करते थे. लूडो की लड़ाइयाँ, खराब साइकिल पर बारी-बारी से घूमना-और शाम को खेलने निकलना, ये सब प्ले डेट्स से कहीं ज्यादा रियल होता था,
जिसके बाद आता था वो रात को छुपन-छुपाई खेलना… जहां एक ही जगह सारे छूप जाते थे और फर सारे एक साथ आउट हो जाते थे. फिर वो आउट होने का आरोप एक दूसरे पर लगाते हुए पूरे घर में चहकना. कभी रसोई में स्नैक्स बना रही मौसी के पास जाके शिकायत करना तो कभी बहार बैठे मामा को जाके बोलना, ये सब अब सिर्फ यादे बन चुकी हैं.
वो हर रात भूतों की कहानियों का गूंजना
गर्मियों की रातें सिर्फ गर्म नहीं होती थीं, वो भूतिया कहानियों से भरी होती थीं. बिजली कटते ही सब छत पर या एक कमरे में इकट्ठा हो जाते थे. सबसे बड़ा कज़िन धीमी आवाज में भूत की कहानी सुनाता, और सब सांस रोके सुनते. कोई भी अकेले बाथरूम नहीं जाता, सब एक-दूसरे से चिपककर सोते थे. लेकिन इन डरावनी रातों में जो रिश्ता बनता था, वो आज की डिजिटल दुनिया में मिलना मुश्किल है. अब सिर्फ सपनों में मुलाकात होती है उन यादों से. जिन्होंने ये सब देखा है वो अब भी इसके लिए तड़प रहे हैं. चाहे अब डेली की भाग-दौड़ की वजह से बात हो या ना हो लेकिन वो दिन आज भी बहुत याद आते हैं.
आज की छुट्टियां: प्लानिंग ज़्यादा, यादें कम
अब नानी के घर जाना एक Zoom कॉल बन चुका है, और Cousins व्हाट्सएप ग्रुप पर “Good Morning” तक सीमित हैं. बच्चों की छुट्टियां structured होती हैं- online classes, summer camps, curated vacations. भूतिया कहानियों की जगह YouTube है. इस पीढ़ी के पास स्क्रीन हैं, पर वो connection नहीं जो दस cousins के साथ फर्श पर सोने में था.
