सुले ने कहा कि लोकतंत्र में सभी को बोलने का अधिकार है. होसबोले ने वही कहा जो उन्हें लगा. संविधान में बदलाव करने की इजाजत किसी को नहीं दी जाएगी.
Nagpur: एनसीपी (सपा) नेता सुप्रिया सुले ने शनिवार को भारतीय संविधान को व्यापक बहस का परिणाम बताया और कहा कि किसी को भी इसमें बदलाव करने की इजाजत नहीं दी जाएगी. बारामती से लोकसभा सांसद सुप्रिया सुले नागपुर में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर रही थीं. आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबोले द्वारा संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों की समीक्षा करने के हाल के आह्वान के बारे में पूछे जाने पर सुले ने कहा कि सभी को अपनी बात कहने की स्वतंत्रता है.
दत्तात्रेय होसबोले ने वही कहा जो उन्हें लगाः सुले
सुले ने कहा, “उन्होंने वही कहा जो उन्हें लगा.” आपातकाल के 50 साल पूरे होने पर एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए होसबोले ने कहा था, “बाबा साहेब अंबेडकर ने जो संविधान की प्रस्तावना बनाई थी, उसमें ये शब्द (समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष) कभी नहीं थे. आपातकाल के दौरान जब मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए, संसद ने काम नहीं किया, न्यायपालिका लंगड़ी हो गई, तब ये शब्द जोड़े गए.” सुले ने कहा कि इस तरह के विवाद उन्हें दिवंगत पूर्व भाजपा नेता अरुण जेटली की याद दिलाते हैं, जो कहा करते थे कि अगर “आप इन घटनाओं को सुर्खियों में लाना बंद कर दें, तो लोग इनके बारे में बात नहीं करेंगे. उन्होंने कहा, “संविधान काफी चर्चा और विचार-विमर्श का परिणाम है. हम इस देश में किसी को भी संविधान बदलने नहीं देंगे.”
कहा- हिंदी महाराष्ट्र में क्यों अनिवार्य
प्राथमिक विद्यालयों में छात्रों के लिए हिंदी को लेकर चल रहे विवाद के बारे में पूछे जाने पर सुले ने पूछा, “क्या गुजरात, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश या तेलंगाना में हिंदी अनिवार्य है? जब हिंदी हर जगह अनिवार्य नहीं है, तो इसे महाराष्ट्र में अनिवार्य क्यों बनाया जा रहा है?” भाषा विवाद तब शुरू हुआ जब राज्य सरकार ने पिछले सप्ताह एक संशोधित आदेश जारी किया जिसमें कहा गया कि हिंदी को कक्षा 1 से 5 तक मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में छात्रों को आम तौर पर तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाएगा. आदेश के अनुसार, यदि किसी स्कूल में प्रति कक्षा 20 छात्र कोई अन्य भारतीय भाषा पढ़ना चाहते हैं, तो वे हिंदी से बाहर निकल सकते हैं. यदि ऐसी मांग उठती है, तो या तो एक शिक्षक नियुक्त किया जाएगा, या भाषा ऑनलाइन पढ़ाई जाएगी. हालांकि, विपक्षी दलों ने इस कदम को तीसरी भाषा के रूप में हिंदी को डिफ़ॉल्ट रूप से थोपना करार दिया.
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