Home Religious क्या आप जानते हैं महाराष्ट्र के अष्टविनायक मंदिर का रहस्य? यहां जानें गणपति के आठ अद्भुत रूपों की अनसुनी कथा

क्या आप जानते हैं महाराष्ट्र के अष्टविनायक मंदिर का रहस्य? यहां जानें गणपति के आठ अद्भुत रूपों की अनसुनी कथा

by Jiya Kaushik
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The Mystery of the Ashtavinayaka Temple: महाराष्ट्र के अष्टविनायक मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से पवित्र हैं, बल्कि इनकी कहानियां भक्तों को आस्था, परिश्रम और भक्ति का संदेश देती हैं. यदि आप जीवन की उलझनों से राहत और शुभ आरंभ की तलाश में हैं, तो अष्टविनायक की यह यात्रा आपके लिए एक दिव्य अवसर बन सकती है.

The Mystery of the Ashtavinayaka Temple: गणेश भक्तों के लिए महाराष्ट्र की भूमि किसी तीर्थ से कम नहीं. यहां स्थित हैं आठ पवित्र मंदिर, अष्टविनायक, जहां भगवान गणपति के आठ दिव्य और चमत्कारी स्वरूप विराजमान हैं.हर मंदिर की अपनी पौराणिक कथा है, जिसमें देवताओं के युद्ध, भक्तों की भक्ति और राक्षसों के अंत की गाथाएं जुड़ी हैं. आइए जानें इन आठ मंदिरों के इतिहास, रहस्य और धार्मिक महत्व के बारे में.

मयूरेश्वर गणपति (मोरगांव)

अष्टविनायक की शुरुआत होती है मोरगांव से, जहां भगवान गणेश मयूरेश्वर रूप में विराजमान हैं. पौराणिक कथा के अनुसार, गणपति ने यहीं मोर पर बैठकर सिंधु नामक राक्षस का वध किया था. मंदिर में विराजमान मूर्ति की तीन आंखें हैं और आंखों-नाभि में हीरे जड़े हैं. चारों दरवाजे सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग का प्रतीक माने जाते हैं.

सिद्धिविनायक (सिद्धटेक)

अहमदनगर जिले के सिद्धटेक में स्थित इस मंदिर में भगवान विष्णु ने मधु और कैथभ राक्षसों के वध के लिए गणेश जी की आराधना की थी. सिद्धिविनायक यहां दाहिनी सूंड वाले रूप में स्थापित हैं, और मंदिर में भगवान विष्णु भी विराजते हैं.

बल्लालेश्वर (पाली)

पाली के बल्लालेश्वर मंदिर का नाम भक्त बल्लाल के नाम पर पड़ा. कथा के अनुसार, बालक बल्लाल की निष्ठा से प्रसन्न होकर गणपति स्वयं प्रकट हुए और वरदान दिया कि वे इस स्थान पर सदैव विराजमान रहेंगे. यहां की मूर्ति विशेष रूप से भक्तों को समर्पित मानी जाती है.

वरदविनायक (महड़, रायगढ़)

वरदविनायक मंदिर को इच्छापूर्ति करने वाले गणेश के रूप में पूजा जाता है. मंदिर में ऋद्धि-सिद्धि की मूर्तियां भी हैं और चारों ओर हाथियों की कलाकृतियां दर्शनीय हैं. मान्यता है कि यहां मांगी गई हर मन्नत पूरी होती है.

चिंतामणि गणेश (थेऊर)

यह मंदिर पुणे जिले में मुला-मुथा और भीमा नदियों के संगम पर स्थित है. चिंतामणि गणेश की मूर्ति स्वयंभू है, जिनकी सूंड बाईं ओर है और आंखों में हीरे जड़े हैं. यह स्थान हर चिंता को हरने वाला माना जाता है. यहीं पर रमाबाई पेशवा की समाधि भी स्थित है.

गिरिजात्मज गणेश (लेण्याद्री)

लेण्याद्री गांव में स्थित यह मंदिर एक प्राचीन बौद्ध गुफा में बना है और पहाड़ी पर स्थित है. माता पार्वती ने यहीं तप कर गणेश को पुत्र रूप में प्राप्त किया था. मंदिर तक पहुंचने के लिए 300 सीढ़ियों की चढ़ाई करनी होती है और यह एकमात्र अष्टविनायक मंदिर है जो गुफा में स्थित है.

विघ्नेश्वर (ओजार)

पुणे के ओजार गांव में स्थित विघ्नेश्वर मंदिर में गणेश जी ने विघ्नासुर राक्षस का अंत किया था. मंदिर में सोने का शिखर और आकर्षक स्थापत्य है. यह मंदिर विघ्नों को हरने वाले गणेश के रूप में प्रसिद्ध है.

महागणपति (रांजनगांव)

यह अष्टविनायक श्रृंखला का अंतिम मंदिर है, लेकिन इसमें विराजमान महागणपति को सबसे शक्तिशाली माना जाता है. गणपति कमल पर बैठे हैं, उनके दस सूंड और बीस हाथ हैं. इस रूप को “महोत्कट” भी कहा जाता है. यहां ऋद्धि-सिद्धि भी उनके साथ विराजती हैं.

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